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"तुम न जाओ सुनयने! / राहुल शिवाय" के अवतरणों में अंतर

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दिल का दर्द समझे कोई ।
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अभी छोड़कर तुम जाओ सुनयने!
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अभी ज़िन्दगी का दिया जल रहा है
  
दुनिया में आसान बहुत है
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तुम्हारे  बिना  सर्जना  क्या  रहेगी
अरमानों की सेज सजाना,
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करेंगीं प्रकट क्या कहो व्यंजनाएँ,  
पर जग में सबसे मुश्किल है
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द्रवित हो बहेंगे, सभी स्वप्न मेरे
सच्चे मन से प्रीत निभाना।
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धुलेंगीं  सभी  प्रेममय  कल्पनाएँ।
अपने आँसू पी जाऊँगा
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रात-रात भर वह है रोई।
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चलते-चलते प्रणय -पंथ पर
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जिऊँगा तुम्हारे बिना प्राण! कैसे
पड़े फफोले हैं पगतल में,
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यही सोच मेरा हृदय गल रहा है।
आँसू सूख चुके आँखों के
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विरह-व्यथा के इस मरुथल में।
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बस नीरव आहें अंतर में
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मन की कोमलता अब खोई।
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उर में आग, प्यास अधरों पर
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बिछी है मधुर चाँदनी आज भू पर
मन-उपवन उजड़ा पतझर-सा ,
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हवा बह रही, मौन रजनी मनोहर,
बिखर गए वो ढाई-आखर
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हृदय धीर खोकर तुम्हें जप रहा है
हुआ हृदय पीड़ित मधुकर-सा।
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मिला है प्रणय का मधुर प्राण! अवसर।
मैंने जिसका हित चाहा था
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उसके उर भी पीड़ा बोई।
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नहीं प्यास मन की अधूरी रहे अब
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रुको स्वप्न मन में अभी पल रहा है।
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प्रिया! इस जगत की विषम वीथियों में
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अगर कुछ अमिट है, यही प्रेम-धन है,
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नहीं प्रेम-सा है, सुखद कुछ जगत में
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न विरहा सदृश प्राण! कोई अगन है।
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अगर हूँ हृदय में बसा प्राणधन! मैं
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ढली साँझ-सा क्यों हृदय ढल रहा है।
 
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16:03, 18 फ़रवरी 2020 के समय का अवतरण

अभी छोड़कर तुम न जाओ सुनयने!
अभी ज़िन्दगी का दिया जल रहा है

तुम्हारे बिना सर्जना क्या रहेगी
करेंगीं प्रकट क्या कहो व्यंजनाएँ,
द्रवित हो बहेंगे, सभी स्वप्न मेरे
धुलेंगीं सभी प्रेममय कल्पनाएँ।

जिऊँगा तुम्हारे बिना प्राण! कैसे
यही सोच मेरा हृदय गल रहा है।

बिछी है मधुर चाँदनी आज भू पर
हवा बह रही, मौन रजनी मनोहर,
हृदय धीर खोकर तुम्हें जप रहा है
मिला है प्रणय का मधुर प्राण! अवसर।

नहीं प्यास मन की अधूरी रहे अब
रुको स्वप्न मन में अभी पल रहा है।

प्रिया! इस जगत की विषम वीथियों में
अगर कुछ अमिट है, यही प्रेम-धन है,
नहीं प्रेम-सा है, सुखद कुछ जगत में
न विरहा सदृश प्राण! कोई अगन है।

अगर हूँ हृदय में बसा प्राणधन! मैं
ढली साँझ-सा क्यों हृदय ढल रहा है।