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"जल प्रतीक्षा दीप अविचल / राहुल शिवाय" के अवतरणों में अंतर
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| − | जल प्रतीक्षा दीप   | + | जल प्रतीक्षा दीप अविचल।  | 
| − | मौन हैं मेरे अधर   | + | मौन  हैं  मेरे  अधर  औ   | 
असह-पीड़ा, ज्वार मन में,  | असह-पीड़ा, ज्वार मन में,  | ||
है समय तम से घिरा यह    | है समय तम से घिरा यह    | ||
ढल चुका रवि है गगन में।  | ढल चुका रवि है गगन में।  | ||
| − | पर मिटा दो यह हताशा    | + | |
| + | पर  मिटा  दो  यह  हताशा    | ||
भर हृदय में आस निर्मल।    | भर हृदय में आस निर्मल।    | ||
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| − | ये भयावह रात काली    | + | प्रश्न - झंझावात मन में   | 
| − | + | मोम-सा गलता हुआ तन,  | |
| + | नेह-लपटों में झुलसकर    | ||
| + | पीर से व्याकुल शलभ-मन।   | ||
| + | |||
| + | पर अभी भी श्वास जीवित   | ||
| + | मत करो विश्वास निर्बल।  | ||
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| + | ये  भयावह  रात  काली    | ||
| + | आज ना तो कल टलेगी,  | ||
है अभी जो वेदना वह    | है अभी जो वेदना वह    | ||
| − | स्वतः ही मजबूर   | + | स्वतः  ही  मजबूर  होगी।   | 
| − | पूर्ण करने यह   | + | |
| − | धीर रखकर, रहो निश्चल।    | + | पूर्ण  करने  यह  तपस्या  | 
| − | + | धीर रखकर, रहो निश्चल।  | |
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16:29, 18 फ़रवरी 2020 के समय का अवतरण
जल प्रतीक्षा दीप अविचल।
मौन  हैं  मेरे  अधर  औ 
असह-पीड़ा, ज्वार मन में,
है समय तम से घिरा यह 
ढल चुका रवि है गगन में।
पर  मिटा  दो  यह  हताशा 
भर हृदय में आस निर्मल। 
प्रश्न - झंझावात मन में 
मोम-सा गलता हुआ तन,
नेह-लपटों में झुलसकर  
पीर से व्याकुल शलभ-मन। 
पर अभी भी श्वास जीवित 
मत करो विश्वास निर्बल।
ये  भयावह  रात  काली 
आज ना तो कल टलेगी,
है अभी जो वेदना वह 
स्वतः  ही  मजबूर  होगी। 
पूर्ण  करने  यह  तपस्या
धीर रखकर, रहो निश्चल।
	
	