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"जो लौटना तुम्हें है / राहुल शिवाय" के अवतरणों में अंतर

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जाने कब तक प्रेम-पिपाशा
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जो लौटना तुम्हें है तो लौट प्राण! जाओ,
तुझको याद रहेगी करती ।
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पर यह कहो कि मन को, क्या दूर कर सकोगी।
  
कहीं सजल नयनों से मेरे
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जिससे  कभी  तुम्हारा  संसार  अर्थ  पाया।
दृश्य न ये धुँधले हो जाएँ,
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जिससे कभी  तुम्हारा  शृंगार  अर्थ  पाया।
आती होगी प्रिया कहीं ये
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तुम आज भूल बैठीं, उसको दिए वचन सब-
ख्वाब न सब मेरे खो जाएँ।
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क्या झूठ कहा व्रत औ त्योहार अर्थ पाया?
सोच इसे आँसू की बूँदें
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नयनों में हैं नहीं उतरती।
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जाने कब तक प्रेम-पिपाशा
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तुझको याद रहेगी करती।
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चिर-पीड़ा से व्याकुल यह मन
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सूखी आहों के गीले घन,  
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जीवन के एकाकीपन में
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कभी न हो मेरा मन उन्मन।
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इस कारण प्रेमिल सुधियाँ नित
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अंतर्मन की पीड़ा हरती।
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जाने कब तक प्रेम-पिपाशा
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तुझको याद रहेगी करती ।
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अमृत-घट की चाह में मैंने
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तुम आज दूर कर दो हर अर्थ को प्रिये पर,  
कालकूट का विष है पाया,  
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तुम मन से हर वचन को क्या दूर कर सकोगी।
प्रेम-दिवस की संध्या में भी
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प्रीत-पंथ पर दीप जलाया।
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आँखें  लदी  घटाएँ  गुमसुम  सदा  रहेंगीं।
खुद को कहता, प्रेम-कथा में   
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मन में बसी व्यथाएँ गुमसुम सदा रहेंगीं।
विरह-अवधि नव रँग है भरती। 
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कोई  नहीं  रहेगा  जो  दर्द  बाँट  ले  कुछ-
जाने कब तक प्रेम-पिपाशा
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सारी  मिली  दुआएँ  गुमसुम  सदा  रहेंगीं।
तुझको याद रहेगी करती।
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तुम कोर पोंछ दृग के आँसू भले छुपा लो-
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तुम विरह की अगन को क्या दूर कर सकोगी।
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प्रिय सुखद क्षण बिताकर, है प्रेम पग पखारा।
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तुम लहर-सी रही हो, मैं रहा हूँ किनारा।
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केवल यही बता दो, फिर कुछ नहीं कहूँगा-
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मुझसे हृदय मिलाकर, क्या रह गया तुम्हारा।
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जिसने बदन तुम्हारा चंदन बना दिया है-
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तुम आज उस छुवन को, क्या दूर कर सकोगी।
 
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16:40, 18 फ़रवरी 2020 के समय का अवतरण

जो लौटना तुम्हें है तो लौट प्राण! जाओ,
पर यह कहो कि मन को, क्या दूर कर सकोगी।

जिससे कभी तुम्हारा संसार अर्थ पाया।
जिससे कभी तुम्हारा शृंगार अर्थ पाया।
तुम आज भूल बैठीं, उसको दिए वचन सब-
क्या झूठ कहा व्रत औ त्योहार अर्थ पाया?

तुम आज दूर कर दो हर अर्थ को प्रिये पर,
तुम मन से हर वचन को क्या दूर कर सकोगी।

आँखें लदी घटाएँ गुमसुम सदा रहेंगीं।
मन में बसी व्यथाएँ गुमसुम सदा रहेंगीं।
कोई नहीं रहेगा जो दर्द बाँट ले कुछ-
सारी मिली दुआएँ गुमसुम सदा रहेंगीं।

तुम कोर पोंछ दृग के आँसू भले छुपा लो-
तुम विरह की अगन को क्या दूर कर सकोगी।

प्रिय सुखद क्षण बिताकर, है प्रेम पग पखारा।
तुम लहर-सी रही हो, मैं रहा हूँ किनारा।
केवल यही बता दो, फिर कुछ नहीं कहूँगा-
मुझसे हृदय मिलाकर, क्या रह गया तुम्हारा।

जिसने बदन तुम्हारा चंदन बना दिया है-
तुम आज उस छुवन को, क्या दूर कर सकोगी।