भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"तो तुम चले जाओ / सुशान्त सुप्रिय" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सुशान्त सुप्रिय |अनुवादक= |संग्रह...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
 
(कोई अंतर नहीं)

19:45, 18 फ़रवरी 2020 के समय का अवतरण

यदि तुम्हें यह सब पसंद नहीं
तो तुम चले जाओ

मैं तो प्रश्न पूछता हूँ
चीज़ों को ज्यों-का-त्यों
स्वीकार नहीं करता
उनके भीतर जाकर
उनके पीछे जाकर
उन्हें जाँचता-परखता हूँ
यदि तुम्हें मिट्टी का माधो पसंद है
तो तुम चले जाओ

मैं तो ईश्वर को नहीं जानता
यह कायनात बना कर जो उसे
बेतरतीब ढहने के लिए छोड़ दे
मैं तो उस ईश्वर को नहीं मानता
यदि तुम उसके अंध-भक्त हो
तो तुम चले जाओ

मैं तो मित्रों से भी खरी-खरी कहता हूँ
लाग-लपेट करना मुझे नहीं आता
यदि तुम पद और नाम की वजह से
सच को सच और झूठ को झूठ
नहीं कह सकते
तो तुम चले जाओ

मुझे सरहदें नहीं भातीं
मैं तो हवा-सा यायावर हूँ
मेरे लिए खो जाना ही
घर आना है
यदि तुम सीमा-रेखाओं के दास हो
तो तुम चले जाओ...