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70 साल उर्दू साहित्य की सेवा में समर्पित किये हैं और अब भी निरंतर साहित्य सेवा में लगे हैं।
 
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रहबर साहिब के सैकड़ों शागिर्द है जिनमें श्यामसुन्दर नन्दा नूर, [[सुरेश चन्द्र शौक़]], [[अभिषेक कुमार अम्बर]], नरेश निसार, अनु जसरोटिया तथा रविकांत अनमोल आदि प्रमुख हैं। अभिषेक कुमार अम्बर इनके सबसे प्रमुख शागिर्द हैं जो इनके साहित्यिक वारिस भी हैं।
===पुस्तकें===
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==पुस्तकें==
 
*कलश (1962)
 
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*मल्हार (1975)
 
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*तेरे खुशबू में बसे ख़त (2017) (द्वितीय संस्करण)
 
*तेरे खुशबू में बसे ख़त (2017) (द्वितीय संस्करण)
  
===पुरस्कार===
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==पुरस्कार==
 
रहबर साहिब को देश विदेश की सैंकड़ों संस्थानों द्वारा विभिन्न सम्मानों से सम्मानित किया जा चुका है। वर्ष 2010 में पंजाब सरकार द्वारा रहबर साहिब को पंजाब का सर्वोच्च सम्मान शिरोमणि साहित्यकार सम्मान से नवाज़ा गया।
 
रहबर साहिब को देश विदेश की सैंकड़ों संस्थानों द्वारा विभिन्न सम्मानों से सम्मानित किया जा चुका है। वर्ष 2010 में पंजाब सरकार द्वारा रहबर साहिब को पंजाब का सर्वोच्च सम्मान शिरोमणि साहित्यकार सम्मान से नवाज़ा गया।

09:46, 22 फ़रवरी 2020 के समय का अवतरण

राजेंद्र नाथ रहबर उर्दू के प्रमुख उस्ताद शायरों में से एक हैं उनका जन्म 05 नवम्बर 1931 को पंजाब के शकरगढ़ में हुआ, जो विभाजन के बाद पाकिस्तान को मिल गया। तथा रहबर साहिब का परिवार पठानकोट आकर बस गया।

रहबर साहिब ने हिन्दू कॉलेज अमृतसर से बी.ए., खालसा कॉलेज पंजाब से एम.ए.(अर्थशास्त्र) और पंजाब यूनिवर्सिटी से एल.एल.बी की। बचपन में शायरी का शौक़ पल गया, बड़े भाई ईश्वरदत्त अंजुम भी शायर थे। रहबर साहिब ने शायरी का फन रतन पंडोरवी से सीखा।

रहबर साहिब की नज़्म तेरे खुशबू में बसे ख़त को विश्वव्यापी शोहरत मिली। इस नज़्म को जगजीत सिंह ने लगभग 30 सालों तक अपनी मखमली आवाज़ में गाया। पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी द्वारा रहबर साहिब को लिखे ख़त के लिए भी वो चर्चा में रहे।

मशहूर फ़िल्म निर्माता महेश भट्ट ने रहबर साहिब मशहूर नज़्म को अपनी फ़िल्म ' अर्थ' में फिल्माया है। रहबर साहिब अपने जीवन के तकरीब 70 साल उर्दू साहित्य की सेवा में समर्पित किये हैं और अब भी निरंतर साहित्य सेवा में लगे हैं।

रहबर साहिब के सैकड़ों शागिर्द है जिनमें श्यामसुन्दर नन्दा नूर, सुरेश चन्द्र शौक़, अभिषेक कुमार अम्बर, नरेश निसार, अनु जसरोटिया तथा रविकांत अनमोल आदि प्रमुख हैं। अभिषेक कुमार अम्बर इनके सबसे प्रमुख शागिर्द हैं जो इनके साहित्यिक वारिस भी हैं।

पुस्तकें

  • कलश (1962)
  • मल्हार (1975)
  • और शाम ढल गई (1978)
  • जेबे-सुख़न (1997)
  • तेरे खुशबू में बसे ख़त (2003)
  • याद आऊंगा (2006)
  • उर्दू नज़्म में पंजाब का हिस्सा (2017)
  • तेरे खुशबू में बसे ख़त (2017) (द्वितीय संस्करण)

पुरस्कार

रहबर साहिब को देश विदेश की सैंकड़ों संस्थानों द्वारा विभिन्न सम्मानों से सम्मानित किया जा चुका है। वर्ष 2010 में पंजाब सरकार द्वारा रहबर साहिब को पंजाब का सर्वोच्च सम्मान शिरोमणि साहित्यकार सम्मान से नवाज़ा गया।