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"ख़ुदनुमा होके निहाँ छुप के नुमायाँ होना / फ़िराक़ गोरखपुरी" के अवतरणों में अंतर
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22:47, 3 मार्च 2020 का अवतरण
ख़ुदनुमा होके निहाँ छुप के नुमायाँ होना
अलग़रज़ हुस्न को रूसवा किसी उनवाँ होना
यूँ तो अकसीर है ख़ाके-दरे-जानाँ लेकिन
काविशे-ग़म से उसे गर्दिशे-दौराँ होना
हद्दे-तमकीं से न बाहर हुई खु़द्दार निगाह
आज तक आ न सका हुस्ने को हैराँ होना
चारागर दर्द सरापा हूँ मेरे दर्द नहीं
बावर आया तुझे नश्तर का रगे-जाँ होना
दफ़्तरे-राज़े-महब्बहत था मलाले-दिल
पर वो सुकूते निगहे-नाज़ का पुरसाँ होना
सर-बसर बर्के़-फ़ना इश्क़ के जलवे हैं 'फ़िराक'
खा़नए-दिल को न आबाद न वीराँ होना।