भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"साथ में जी लूं या जीते जी मर जाऊं / मोहित नेगी मुंतज़िर" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=मोहित नेगी मुंतज़िर |अनुवादक= |सं...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
 
(कोई अंतर नहीं)

17:02, 6 मार्च 2020 के समय का अवतरण

साथ में जी लूं या जीते जी मर जाऊं
अपना सब कुछ तुझको अर्पण कर जाऊं

तेरी ख़ातिर छोड़ दिया घर बार अपना
बोल मैं क्या मुंह लेकर अपने घर जाऊं

दुनिया की सारी दौलत इक ओर करूँ
तेरा साथ अगर पाऊं तो तर जाऊं

दिल का कोना खाली खाली लगता है
मिल जाये जो साथ तिरा तो भर जाऊं

मेरा बस इक ख़्वाब है 'मोहित' जीवन में
कुछ नेकी के काम जहां में कर जाऊं।