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"इस जहां से जब उजाले मिट गए / अभिषेक कुमार अम्बर" के अवतरणों में अंतर

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1.इस जहां से जब उजाले मिट गए,
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इस जहां से जब उजाले मिट गए,
 
दोषियों के दोष काले मिट गए।
 
दोषियों के दोष काले मिट गए।
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क्यों जहां में बढ़ रही हैं नफ़रतें,
 
क्यों जहां में बढ़ रही हैं नफ़रतें,
 
क्या मोहब्बत करने वाले मिट गए।
 
क्या मोहब्बत करने वाले मिट गए।
  
2.
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ख़ुद थे अपनी जान के दुश्मन हमीं
काश! दिल से उतर गए होते,
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आस्तीं में साँप पाले मिट गए।
सब हदें पार कर गए होते।
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सांसें लेना भी छोड़ देते हम,
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आप अगर बोलकर गए होते।
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19:46, 6 मार्च 2020 के समय का अवतरण

इस जहां से जब उजाले मिट गए,
दोषियों के दोष काले मिट गए।

क्यों जहां में बढ़ रही हैं नफ़रतें,
क्या मोहब्बत करने वाले मिट गए।

ख़ुद थे अपनी जान के दुश्मन हमीं
आस्तीं में साँप पाले मिट गए।