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"उलझनें / अंशु हर्ष" के अवतरणों में अंतर

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23:08, 18 मार्च 2020 के समय का अवतरण

संसार के कल्प वृक्ष पर
कांटों के साये में
मन की उलझनों के
कितने धागे बुने है
हर दिन पाने और खोने
के बीच मन की तड़पन के
अनगिनत तीर चुभे है
उलझता जाता हूँ
क़ायनात के धागों को लेकर
इस अजीब-सी कशमकश में
ये ना जाने कितनी सदियों की उलझने है