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"मन का द्वार / अंशु हर्ष" के अवतरणों में अंतर
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मेरे मन का द्वार खुला रखा है
तुम्हारे लिए
क्योंकि मुझे पता है
एक दिन तुम आओगे
वैसे ही जैसे शबरी के राम आये थे
अहिल्या को फिर से एक रूप देने
तुम्हारें बिना पत्थर ही तो थी में
तुम्हारे साथ के अहसास भर से
देखो कितना भाव पूर्ण हो गया
मन मेरा ...