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Kavita Kosh से
मौसम गुजरते रहे
बिरवे में बर्दाश्त की कोंपलें
पीड़ा के फूल सुलगे
रंगों की कांपती खामोशी लिए
तितलियाँ मंडराई मंडराईं
पतझड़ में सब कुछ