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"रंजिश ही सही दिल ही दुखाने के लिए आ / फ़राज़" के अवतरणों में अंतर

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क़ुर्बतों<ref>सामीप्य</ref> में भी जुदाई के ज़माने माँगे
+
रंजिश ही सही दिल ही दुखाने के लिए आ
दिल वो बेमेह्र<ref>निर्दयी</ref> कि रोने के बहाने माँगे
+
आ फिर से मुझे छोड़ के जाने के लिए आ
  
अपना ये हाल के जी हार चुके लुट भी चुके
+
कुछ तो मेरे पिन्दार-ए-मुहब्बत<ref>प्रेम के गर्व</ref> का भरम रख
और मुहब्बत वही अन्दाज़ पुराने माँगे
+
तू भी तो कभी मुझको मनाने के लिए आ
  
यही दिल था कि तरसता था मरासिम <ref>प्रेम-व्यवहार,सम्बन्ध</ref>के लिए
+
पहले से मरासिम<ref>प्रेम व्यवहार
अब यही तर्के-तल्लुक़<ref>संबंध-विच्छेद</ref> के बहाने माँगे
+
</ref> न सही फिर भी कभी तो
 +
रस्मे-रहे-दुनिया<ref>सांसारिक शिष्टाचार
 +
</ref> ही निभाने के लिए आ
  
हम न होते तो किसी और के चर्चे होते
+
किस-किस को बताएँगे जुदाई का सबब हम  
खल्क़त-ए-शहर<ref>शहरी जनता</ref> तो कहने को फ़साने माँगे
+
तू मुझ से ख़फा है तो ज़माने के लिए आ
 +
 
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माना के मुहब्बतका छुपाना है मुहब्बत
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चुपके से किसी रोज़ जताने के लिए आ
 +
 
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जैसे तुम्हे आते हैं न आने के बहाने
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वैसे ही किसी रोज न जाने के लिए
 +
 
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इक उम्र से हूँ लज्ज़त-ए-गिरिया<ref>रोने के स्वाद</ref> से भी महरूम <ref>वंचित
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ऐ राहत-ऐ-जाँ<ref>प्राणाधार
 +
</ref> मुझको रुलाने के लिए आ
 +
 
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अब तक दिल-ऐ-ख़ुशफ़हम<ref>किसी की ओर से अच्छा विचार रखने वाला मन</ref> को तुझ से है उम्मीदें
 +
ये आखिरी शम्अ  भी बुझाने के लिए आ
  
ज़िन्दगी हम तेरे दाग़ों से रहे शर्मिन्दा
 
और तू है कि सदा आइनेख़ाने<ref>वह भवन जिसके चारों ओर दर्पण लगे हों</ref>माँगे
 
  
दिल किसी हाल पे क़ाने<ref>आत्मसंतोषी</ref>  ही नहीं जान-ए-"फ़राज़"
 
मिल गये तुम भी तो क्या और न जाने माँगे
 
 
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20:24, 31 मार्च 2020 के समय का अवतरण

रंजिश ही सही दिल ही दुखाने के लिए आ
आ फिर से मुझे छोड़ के जाने के लिए आ

कुछ तो मेरे पिन्दार-ए-मुहब्बत<ref>प्रेम के गर्व</ref> का भरम रख
तू भी तो कभी मुझको मनाने के लिए आ

पहले से मरासिम<ref>प्रेम व्यवहार
</ref> न सही फिर भी कभी तो
रस्मे-रहे-दुनिया<ref>सांसारिक शिष्टाचार
</ref> ही निभाने के लिए आ

किस-किस को बताएँगे जुदाई का सबब हम
तू मुझ से ख़फा है तो ज़माने के लिए आ

माना के मुहब्बतका छुपाना है मुहब्बत
चुपके से किसी रोज़ जताने के लिए आ

जैसे तुम्हे आते हैं न आने के बहाने
वैसे ही किसी रोज न जाने के लिए

इक उम्र से हूँ लज्ज़त-ए-गिरिया<ref>रोने के स्वाद</ref> से भी महरूम <ref>वंचित
</ref>
ऐ राहत-ऐ-जाँ<ref>प्राणाधार
</ref> मुझको रुलाने के लिए आ

अब तक दिल-ऐ-ख़ुशफ़हम<ref>किसी की ओर से अच्छा विचार रखने वाला मन</ref> को तुझ से है उम्मीदें
ये आखिरी शम्अ भी बुझाने के लिए आ


शब्दार्थ
<references/>