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"है पग-पग संग्राम, भरा काँटों से उपवन / रंजना वर्मा" के अवतरणों में अंतर

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है पग-पग संग्राम, भरा काँटों से उपवन।
लीजे हरि का नाम, सुखद बन जाये जीवन॥

केवल अपने हेतु, जिये वह कैसा मानव
पर उपकारी नित्य, सुशोभित जैसे चन्दन॥

यों तो लेते साँस, जगत में प्राणी सारे
करें जहाँ भी वास, वहीं बन जाता कानन॥

रखता शुद्ध विचार, विश्व हित में चिंतन रत
उस घर शालिग्राम, महकती तुलसी आँगन॥

हैं जो जन निर्दोष, कष्ट वे ज़्यादा पाते
यह कलियुग विकराल, धर्म बन बैठा है धन॥

जिन्हें न व्यापी पीर, ग्रीष्म पतझर अनजाने
हरियाली के मीत, उन्हें तो नित प्रति सावन॥

करते जो उद्योग, सफलता हैं वे पाते
आलस के जो दास, विजय कब पाते वे जन॥