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"तालाबन्दी / विजय चोरमारे / टीकम शेखावत" के अवतरणों में अंतर

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Vijay Chormare
 
मराठी कवि विजय चोरमारे की कविता -- तालाबन्दी
 
 
किया जा रहा है इनसानों को सैनीटाइज़
 
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मैल से सने हुए हैं उनके कपड़े
 
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कि अब पहचान नहीं सकेंगे घर वाले भी
 
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पाँव कट-फट चुके हैं, उजड़ गया है सब कुछ
 
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फिर भी थके नहीं है पैर
 
फिर भी थके नहीं है पैर

19:00, 3 अप्रैल 2020 के समय का अवतरण

किया जा रहा है इनसानों को सैनीटाइज़
मैल से सने हुए हैं उनके कपड़े
बालों पर, चेहरे पर जम गई है धूल की परत
इतनी मोटी धूल की परत
कि अब पहचान नहीं सकेंगे घर वाले भी

पाँव कट-फट चुके हैं, उजड़ गया है सब कुछ
फिर भी थके नहीं है पैर
करना है अभी एक लम्बा सफ़र तय
ज़िन्दा बचे रहने की मैराथन में
पहुँचेंगे जो घर तक, जीत जाएँगे वे सब
ये नहीं पता, कितने ही अधूरा छोड़ देंगे ये सफ़र

निकल चुका हूँ गाँव की ओर
शायद बताया होगा निकलते समय
कैसे आऊँगा, कब तक आऊँगा नहीं बता पाए तब भी

रास्ता नापते-नापते मोबाइल हो गया है धराशायी
बचा हुआ है नेट अभी, परन्तु बैटरी नहीं दे रही साथ !

कुछ ऐसी ही है ज़िन्दगी इनकी
जब नेट होता है तो बैटरी नहीं होती
जब बैटरी होती है फुल्ल तब नेट हो चुका है समाप्त
और जब दोनों ही होते है तब रेंज छोड़ देती है साथ !
बूढी अम्मा कब से बैठी होगी देहलीज़ पर,
मिचयायी आँखों से रास्ता ताकते
बैठना पड़ेगा उसे और कितनी देर, पता नहीं
अब तो शुरू हो गया है सैनीटाइज़ेशन हर चौराहे पर
फव्वारें से नहलाया जा रहा है हर एक का शरीर ।

जानबूझकर उन्होंने कभी भी थालियाँ नहीं बजाईं
प्रधानमन्त्री के आह्वान पर भी
उन्हें बजानी ही नहीं पड़ती अलग से कभी थाली
बजने लगती है अपने आप उनके बच्चों की थालियाँ
जब लगती है भूख

सोशल डिस्टंसिंग का पालन नहीं करने वाली
यह देहाती जनता
बस स्टैण्ड पर गर्दी करने वाली
रास्ते पर भीड़ बनकर चलने वाली
उन्हें दिखाइए ज़रा तस्वीर
विमान में बैठे सभ्य लोगों की
एयरपोर्ट वाली लाइनों की
नेताओं के घर वालों की
वे कैसे रहते हैं
एक ही घर में, घर के भीतर ही एक दूजे से अन्तर रखकर

माननीय प्रधानमन्त्री जी
कठोरता से करवाइए इस कानून का पालन
आपने इतने दर्द भरे स्वर में किया था आह्वान
आपके अनुयायियों ने फिर बजाई थी तालियाँ.

बस, एक ही आदमी को है इस देश की चिन्ता
ऐसे मैसेज भेजे गए थे देश-विदेश में
फिर भी देखिए न
आपके आदेश का उल्लंघन कर रहे है ये देहाती लोग
नहीं सुन रहे पुलिस की भी
इनका करवा दीजिए सैनीटाइज़ेशन
बुला लीजिए आर्मी
और तब भी नहीं सुने जो ये लोग
तो चलवा दीजिए गोलियाँ

वैसे भी इसमें से आधी से ज्यादा पब्लिक को मर जाना है भूख से तड़पकर
भुखमरी के दाग से तो बेहतर है
कठोर कानून के पालन करते थालीनाद करने दीजिए भक्तों को

राजधानी के बस स्टेण्ड पर देखकर असीमित भीड़
प्रभु राम की पूजा करके आए मुख्यमन्त्री बोले,
मुझे तो इनमें नज़र आ रही है
रामसेतु बनाने जाती हुई वानर सेना

अस्मिता के नाम पर राजनीति का हल चलाने वाले
एक राजनेता ने
अपना गौगल ठीक करते हुए कहा,
मेरा काम तो इस वायरस ने ही कर दिया

इन अभागो का नसीब देखिये
नहीं देख पा रहे हैं ये लोग रामायण
'भारत एक खोज' भी नहीं है इनके हिस्से में
"हम भारत के लोग"
कहते हुए
निकले है ये लोग भारत की खोज में
स्वतंत्रता की प्लेटीनम जुबली सेलिब्रेट करने

काँधे पर बच्चे को लिए
क्षत-विक्षत हुए पैरों पर चलता भूखा बाप
खा रहा है पुलिस की लाठियां
बच्चा बेहद घबरा गया है देखकर यह सब !

फ्रैक्चर हो चुका है पत्नी का पैर
उसे काँधे पर लेकर २०० मील का सफर तय करनेवाले पति ने
इसी रास्ते पर लिखी
विश्व इतिहास की अमर प्रेम कहानी

महाशक्ति बनने के पथ पर महागुरु देश
दूसरी बार देख रहा है इस देश का विभाजन
पहले हिन्दू-मुस्लिम का हुआ था
अब शहरी और ग्रामीणों का
इण्डिया और भारत वालों का
पासपोर्ट वाले और राशनकार्ड वालों का !

परमदयालु सरकार भेजती है हवाई जहाज़
वायरस की आवाजाही के लिए
और दो जून की रोटी को तरसते ग़रीब
पैदल ही निकल पड़े है अपने गाँव, वायरस को पीठ पर बान्धे
शहर ने इनके पाँव तले की जमीन ही खींच ली है

उधर गाँववाले भी नहीं दे रहे सर पर आकाश
इनकी ज़िन्दगी हो गई है निर्वासितों की छावनी में तब्दील

और वहाँ
वायरस लेकर आए हुए लोग
इस पशोपेश में है कि समय कैसे काटा जाए

रोज़ हो रहे है नए प्रयोग, खाने के, गाने के
चिन्ता है, बस, इस बात की, कि कैसे कटे तालाबन्दी वाले ये दिन
लेकिन यहाँ रास्ते पर पड़े इन लोगों की ज़िन्दगी पर ही लग गई है तालाबन्दी !!

मूल मराठी से अनुवाद — टीकम शेखावत