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सघन वन
भटकते क़दम
नीरव मन
रात्रि उदास
मन में है विश्वास
होगा उजास
दृग छलके
देख रहे हैं हम
ख़्वाब कल के
संसार मेला
मिलन बिखराव
यात्री अकेला
प्रीत की डोर
सागर में हिलोर
ओर न छोर