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"रिश्ते और खोज स्नेह / ओम व्यास" के अवतरणों में अंतर

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जिसे ढूँढता है आदमी,  
 
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नकार कर वह सतत खोजता है
 
हर युग में हर समय  
 
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रिश्त...जो पैदा होते है  
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नित-नये ढंग से  
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पैदा होने से पहले ही।  
 
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स्नेह...
 
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जो आवश्यक नहीं। अनुबंध भी नहीं  
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रिश्तों के साथ
 
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असीमित है
 
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वह रेल के सहयात्री से। पशुओं तक  
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वह रेल के सहयात्री से।
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सहज  
 
सहज  
 
पर फिर भी
 
पर फिर भी

19:00, 10 अप्रैल 2020 के समय का अवतरण

हर परिचय में
ढूँढता है
आदमी रिश्ते
और
रिश्तों में ढूँढता है
नेह का
एक टुकड़ा।
दुर्लभ सा हो गया है
वह
जिसे ढूँढता है आदमी,
पर
नकार कर वह सतत खोजता है
हर युग में हर समय
रिश्त जो पैदा होते है
नित नये ढंग से
और
कितनी ही बार
मर जाते है
पैदा होने से पहले ही।
स्नेह...
जो आवश्यक नहीं।
अनुबंध भी नहीं
रिश्तों के साथ
असीमित है
वह रेल के सहयात्री से।
पशुओं तक
सहज
पर फिर भी
खोजता है
आदमी
एक टुकड़ा प्यार का
रिश्तों में
निरन्तर।