भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"विदाई / सरोजिनी कुलश्रेष्ठ" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सरोजिनी कुलश्रेष्ठ |अनुवादक= |संग...' के साथ नया पृष्ठ बनाया) |
(कोई अंतर नहीं)
|
15:33, 11 अप्रैल 2020 के समय का अवतरण
जाओ बादल अब अपने घर
तुमने अमृत जल बरसाया
तपती धरती को सहलाया
नन्हें पौधों को नहलाया
बूंदें बरसी झर-झर–झर॥ जाओ बादल...
कभी तुम्हें सूझी शैतानी
सबको दुख देने की ठानी।
बरसाया जोरों से पानी
सभी हो गए तरबतर॥ जाओ बादल...
गड़-गड़ कर गरजे तुम भारी
फैली सभी ओर अंधयारी
बिजली भी चमकाई भारी
काँप उठे सब थर-थर-थर॥ जाओ बादल...
अब तो छिटक गए हो प्यारे
मटके सूखे सभी तुम्हारे
हरे भरे हैं खेत हमारे
नहीं अब हमें कोई डर॥ जाओ बादल...