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"सीता: एक नारी / प्रथम सर्ग / पृष्ठ 4 / प्रताप नारायण सिंह" के अवतरणों में अंतर

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श्रीराम, लक्ष्मण के शरों से असुर सब घिरने लगे
 
श्रीराम, लक्ष्मण के शरों से असुर सब घिरने लगे
अविछिन्न होकर अंग उनके भूमि पर गिरने लगे
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विच्छिन्न होकर अंग उनके भूमि पर गिरने लगे
  
 
मारे गए खर और दूषण, बाहुबल जिनका बड़ा
 
मारे गए खर और दूषण, बाहुबल जिनका बड़ा
 
शर-बिद्ध होकर शीश उनका भूमि पर था गिर पड़ा
 
शर-बिद्ध होकर शीश उनका भूमि पर था गिर पड़ा
 
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19:24, 21 अप्रैल 2020 के समय का अवतरण

मैं लाड़ली दुहिता जनक की, बस महल तक ही रही
पहले भयावहता कभी थी युद्ध की देखी नहीं

सुन्दर महल, रमणीय उपवन, पुष्करिणियाँ मोहतीं
खगवृंद कलरव बीच सखियाँ हास्य सम्पुट खोलतीं

परिचय यही बस था अभी तक जगत के व्यवहार से
अनभिज्ञ थी बिल्कुल समर के तीर औ' तलवार से

मैं डर गई थी राक्षसी की देखकर विकरालता
विच्छिन्न श्रुति औ' नासिका से रक्त अविरल टपकता
 
फिर राक्षसों का जो मचा चहुँ ओर हाहाकार था
चारो तरफ से कर्णभेदी उठ रहा हुंकार था

था पट गया नभ अस्त्र-शस्त्रों की सतत बौछार से
गुंजित दिशाएँ हो उठीं कोदंड के टंकार से

श्रीराम, लक्ष्मण के शरों से असुर सब घिरने लगे
विच्छिन्न होकर अंग उनके भूमि पर गिरने लगे

मारे गए खर और दूषण, बाहुबल जिनका बड़ा
शर-बिद्ध होकर शीश उनका भूमि पर था गिर पड़ा