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"न होंठों पर हँसी आई, न आँखों में चमक देखी / हरिराज सिंह 'नूर'" के अवतरणों में अंतर

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न होंठों पर हँसी आई, न आँखों में चमक देखी।
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गगन पर चाँद भी आया, न पहले-सी दमक देखी।
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न बिजली ही गिरी आँगन, न बरसा झूम के सावन,
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न पत्तों पर चमक देखी, न फूलों में महक देखी।
  
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न भादों की झड़ी देखी, न सावन में पड़े झूले,
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न मिलने की ललक देखी,न चिड़ियों की फुदक देखी।
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न पेड़ों पर बहार आई, न गायक से सुनी कजली,
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न फ़स्लें खेत में देखीं, न बादल में धनक देखी।
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न देखा रूप बरखा का, न देखा ताल में पानी,
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जो देखी ‘नूर’ तो हमने जलाते तन, तपन देखी।
 
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22:19, 24 अप्रैल 2020 के समय का अवतरण

न होंठों पर हँसी आई, न आँखों में चमक देखी।
गगन पर चाँद भी आया, न पहले-सी दमक देखी।
 
न बिजली ही गिरी आँगन, न बरसा झूम के सावन,
न पत्तों पर चमक देखी, न फूलों में महक देखी।

न भादों की झड़ी देखी, न सावन में पड़े झूले,
न मिलने की ललक देखी,न चिड़ियों की फुदक देखी।

न पेड़ों पर बहार आई, न गायक से सुनी कजली,
न फ़स्लें खेत में देखीं, न बादल में धनक देखी।

न देखा रूप बरखा का, न देखा ताल में पानी,
जो देखी ‘नूर’ तो हमने जलाते तन, तपन देखी।