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"ग़म उठाने को भली है ज़िन्दगी / हरिराज सिंह 'नूर'" के अवतरणों में अंतर

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आए तो आए ये कैसे होश में?
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शोख़ियों से दूर कैसे हो सके?
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नाज़ में, मेरी पली है ज़िन्दगी।
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जब ज़रूरत आदमी को आ पड़ी,
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लकड़ियो-सी तब जली है ज़िन्दगी।
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‘नूर’ को भी अब भरोसा हो गया,
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आपकी फूली-फली है ज़िन्दगी।
 
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22:29, 24 अप्रैल 2020 के समय का अवतरण

ग़म उठाने को भली है ज़िन्दगी।
जिसमें ख़तरे वो गली है ज़िन्दगी।

मौत ने जब डर दिखाया अपना तो,
आगे-आगे हो चली है ज़िन्दगी।

आए तो आए ये कैसे होश में?
रौनक़े-दिल में ढली है ज़िन्दगी।

शोख़ियों से दूर कैसे हो सके?
नाज़ में, मेरी पली है ज़िन्दगी।

जब ज़रूरत आदमी को आ पड़ी,
लकड़ियो-सी तब जली है ज़िन्दगी।

‘नूर’ को भी अब भरोसा हो गया,
आपकी फूली-फली है ज़िन्दगी।