"माहिए (111 से 120) / हरिराज सिंह 'नूर'" के अवतरणों में अंतर
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=हरिराज सिंह 'नूर' |अनुवादक= |संग्रह...' के साथ नया पृष्ठ बनाया) |
|||
पंक्ति 7: | पंक्ति 7: | ||
{{KKCatMahiya}} | {{KKCatMahiya}} | ||
<poem> | <poem> | ||
+ | 111. भगवन के ख़ज़ाने में | ||
+ | ‘नूर’ सभी कुछ है | ||
+ | देरी है तो पाने में | ||
+ | 112. मन मोह लिया करतीं | ||
+ | ‘नूर’ ये बूँदें भी | ||
+ | धरती की तपन हरतीं | ||
+ | |||
+ | 113. बह निकले सभी नाले | ||
+ | आते ही बरखा के | ||
+ | हो जाते हैं मतवाले | ||
+ | |||
+ | 114. मन जीत सको जीतो | ||
+ | आज सजन मेरा | ||
+ | जाए है समय बीतो | ||
+ | |||
+ | 115. क्या दाल में काला है | ||
+ | सबके यहाँ मिलता | ||
+ | मकड़ी का वो जाला है | ||
+ | |||
+ | 116. वो चिन्ता जो जागी है | ||
+ | दिन से जुड़ी लेकिन | ||
+ | सूरज से न भागी है | ||
+ | |||
+ | 117. सूरज भी है झुकने को | ||
+ | आँख से तुम देखो | ||
+ | अब युद्ध है रुकने को | ||
+ | |||
+ | 118. संसार ने जो माना | ||
+ | क्या था महाभारत | ||
+ | अब तक वो सही माना | ||
+ | |||
+ | 119. तूफ़ान तो आएगा | ||
+ | कैसे वो मछुआरा | ||
+ | कश्ती को बचाएगा | ||
+ | |||
+ | 120. हम सब ही तो नाचेंगे | ||
+ | भाग्य में जो कुछ है | ||
+ | उस पोथी को बाँचेंगे | ||
</poem> | </poem> |
12:48, 26 अप्रैल 2020 के समय का अवतरण
111. भगवन के ख़ज़ाने में
‘नूर’ सभी कुछ है
देरी है तो पाने में
112. मन मोह लिया करतीं
‘नूर’ ये बूँदें भी
धरती की तपन हरतीं
113. बह निकले सभी नाले
आते ही बरखा के
हो जाते हैं मतवाले
114. मन जीत सको जीतो
आज सजन मेरा
जाए है समय बीतो
115. क्या दाल में काला है
सबके यहाँ मिलता
मकड़ी का वो जाला है
116. वो चिन्ता जो जागी है
दिन से जुड़ी लेकिन
सूरज से न भागी है
117. सूरज भी है झुकने को
आँख से तुम देखो
अब युद्ध है रुकने को
118. संसार ने जो माना
क्या था महाभारत
अब तक वो सही माना
119. तूफ़ान तो आएगा
कैसे वो मछुआरा
कश्ती को बचाएगा
120. हम सब ही तो नाचेंगे
भाग्य में जो कुछ है
उस पोथी को बाँचेंगे