"माहिए (121 से 130) / हरिराज सिंह 'नूर'" के अवतरणों में अंतर
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+ | अपने गुनाहों पर | ||
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+ | 122. वो धर्म तो पहचाना | ||
+ | कृष्ण का पर उसने | ||
+ | उपदेश नहीं माना | ||
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+ | 123. दोहों में ‘कबीरा’ के | ||
+ | खोज गुणों की जो | ||
+ | भजनों में वो ‘मीरा’ के | ||
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+ | 124. जब नाव कोई हिलती | ||
+ | आब पे दरिया के | ||
+ | बेचैनी रवां मिलती | ||
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+ | 125. जो क़ैद है गीतों में | ||
+ | भूल गए तुम सब | ||
+ | संसार की रीतों में | ||
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+ | 126. माथे के लिए चंदन | ||
+ | ढ़ूँड न पाओगे | ||
+ | तुम भटको भले वन-वन | ||
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+ | 127. अब और कहाँ जाऊँ | ||
+ | वक़्त की चालों से | ||
+ | वन भटकूँ मैं घबराऊँ | ||
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+ | 128. तिनके का सहारा है | ||
+ | डूबते इन्सां को | ||
+ | क्या ख़ूब विचारा है | ||
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+ | 129. रोने को नहीं कोई | ||
+ | उस से मिरा परदा | ||
+ | जिस परदे में वो रोई | ||
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+ | 130. जिसने भी की माँ-सेवा | ||
+ | वो ही फला-फूला | ||
+ | उसको ही मिली मेवा | ||
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12:48, 26 अप्रैल 2020 के समय का अवतरण
121. आँखें ये खुलेंगी तब
अपने गुनाहों पर
पछताओगे जब तुम सब
122. वो धर्म तो पहचाना
कृष्ण का पर उसने
उपदेश नहीं माना
123. दोहों में ‘कबीरा’ के
खोज गुणों की जो
भजनों में वो ‘मीरा’ के
124. जब नाव कोई हिलती
आब पे दरिया के
बेचैनी रवां मिलती
125. जो क़ैद है गीतों में
भूल गए तुम सब
संसार की रीतों में
126. माथे के लिए चंदन
ढ़ूँड न पाओगे
तुम भटको भले वन-वन
127. अब और कहाँ जाऊँ
वक़्त की चालों से
वन भटकूँ मैं घबराऊँ
128. तिनके का सहारा है
डूबते इन्सां को
क्या ख़ूब विचारा है
129. रोने को नहीं कोई
उस से मिरा परदा
जिस परदे में वो रोई
130. जिसने भी की माँ-सेवा
वो ही फला-फूला
उसको ही मिली मेवा