"माहिए (131 से 140) / हरिराज सिंह 'नूर'" के अवतरणों में अंतर
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+ | 131. जब आता है सैलानी | ||
+ | आँख दिखाएं सब | ||
+ | करते भी हैं मनमानी | ||
+ | 132. जब पाक इरादे हैं | ||
+ | मन पे तिरे किसने | ||
+ | फिर बोझ-से लादे हैं | ||
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+ | 133. इस देश के वीरों ने | ||
+ | हार न मानी है | ||
+ | ‘अर्जुन’ के भी तीरों ने | ||
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+ | 134. पाकीज़ा बदन तेरा | ||
+ | देख, खिलेगा ही | ||
+ | मुरझाया जो तन मेरा | ||
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+ | 135. इन आँखों की मस्ती में | ||
+ | तुम भी ज़रा घोलो | ||
+ | अहसास को हस्ती में | ||
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+ | 136. जो आएगा महफिल में | ||
+ | कोई सही उसको | ||
+ | बैठाएंगे हम दिल में | ||
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+ | 137. है तेरा जहां सारा | ||
+ | देख, ज़रा उठकर | ||
+ | कहती है समय-धारा | ||
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+ | 138. ये नक़्श उसी के हैं | ||
+ | ‘नूर’ कि जो बाँटे | ||
+ | उसके ही सितारे हैं | ||
+ | |||
+ | 139. जो रंज भी तेरे हैं | ||
+ | जान भी ले इतना | ||
+ | वो उतने ही मेरे हैं | ||
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+ | 140. कैसी है ये मजबूरी | ||
+ | कौन मिटाएगा | ||
+ | हम-तुम में जो है दूरी | ||
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12:49, 26 अप्रैल 2020 के समय का अवतरण
131. जब आता है सैलानी
आँख दिखाएं सब
करते भी हैं मनमानी
132. जब पाक इरादे हैं
मन पे तिरे किसने
फिर बोझ-से लादे हैं
133. इस देश के वीरों ने
हार न मानी है
‘अर्जुन’ के भी तीरों ने
134. पाकीज़ा बदन तेरा
देख, खिलेगा ही
मुरझाया जो तन मेरा
135. इन आँखों की मस्ती में
तुम भी ज़रा घोलो
अहसास को हस्ती में
136. जो आएगा महफिल में
कोई सही उसको
बैठाएंगे हम दिल में
137. है तेरा जहां सारा
देख, ज़रा उठकर
कहती है समय-धारा
138. ये नक़्श उसी के हैं
‘नूर’ कि जो बाँटे
उसके ही सितारे हैं
139. जो रंज भी तेरे हैं
जान भी ले इतना
वो उतने ही मेरे हैं
140. कैसी है ये मजबूरी
कौन मिटाएगा
हम-तुम में जो है दूरी