"माहिए (141 से 150) / हरिराज सिंह 'नूर'" के अवतरणों में अंतर
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=हरिराज सिंह 'नूर' |अनुवादक= |संग्रह...' के साथ नया पृष्ठ बनाया) |
|||
पंक्ति 7: | पंक्ति 7: | ||
{{KKCatMahiya}} | {{KKCatMahiya}} | ||
<poem> | <poem> | ||
+ | 141. वो भी तो है सेनानी | ||
+ | यूँ ही नहीं कहते | ||
+ | करता है वो मनमानी | ||
+ | 141. मालिक के सहारे हम | ||
+ | राह में जो आएं | ||
+ | वो पार करें सब ग़म | ||
+ | |||
+ | 143. बदला है हवा पानी | ||
+ | लोग भी बदले हैं | ||
+ | फिर भी है जहां फ़ानी | ||
+ | |||
+ | 144. नकली ये दवाई है | ||
+ | कोई नहीं खाए | ||
+ | इसमें ही भलाई है | ||
+ | |||
+ | 145. कुछ खोया तो कुछ पाया | ||
+ | सिर्फ़ यही सच है | ||
+ | कुछ हाथ नहीं आया | ||
+ | |||
+ | 146. घट - घट के हो तुम वासी | ||
+ | दो न मुझे अमृत | ||
+ | है रूह मिरी प्यासी | ||
+ | |||
+ | 147. पी-पी के मैं आँसू-जल | ||
+ | खारा सही लेकिन | ||
+ | अपने को कहूँ निर्मल | ||
+ | |||
+ | 148. किस काम की चतुराई | ||
+ | मुझको बता नाविक | ||
+ | जो काम नहीं आई | ||
+ | |||
+ | 149. ये भाग्य की रेखा है | ||
+ | कौन इसे जाने | ||
+ | किस तरह का लेखा है | ||
+ | |||
+ | 150. पथ अपने चले जाऊँ | ||
+ | नूर को देने की | ||
+ | बस ज़िद में जल जाऊँ | ||
</poem> | </poem> |
12:50, 26 अप्रैल 2020 के समय का अवतरण
141. वो भी तो है सेनानी
यूँ ही नहीं कहते
करता है वो मनमानी
141. मालिक के सहारे हम
राह में जो आएं
वो पार करें सब ग़म
143. बदला है हवा पानी
लोग भी बदले हैं
फिर भी है जहां फ़ानी
144. नकली ये दवाई है
कोई नहीं खाए
इसमें ही भलाई है
145. कुछ खोया तो कुछ पाया
सिर्फ़ यही सच है
कुछ हाथ नहीं आया
146. घट - घट के हो तुम वासी
दो न मुझे अमृत
है रूह मिरी प्यासी
147. पी-पी के मैं आँसू-जल
खारा सही लेकिन
अपने को कहूँ निर्मल
148. किस काम की चतुराई
मुझको बता नाविक
जो काम नहीं आई
149. ये भाग्य की रेखा है
कौन इसे जाने
किस तरह का लेखा है
150. पथ अपने चले जाऊँ
नूर को देने की
बस ज़िद में जल जाऊँ