"माहिए (151 से 160) / हरिराज सिंह 'नूर'" के अवतरणों में अंतर
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+ | 151. बिखरे हैं मिरे सपने | ||
+ | मन में जो उपजे हैं | ||
+ | कब होंगे वो सब अपने | ||
+ | 152. हर मौज लिए आशा | ||
+ | गहरे समुन्दर में | ||
+ | तोला तो कभी माशा | ||
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+ | 153. सावन की घटाएं ये | ||
+ | बरसे बिना कैसे | ||
+ | क्या आग बुझाएं ये | ||
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+ | 154. मेले में कभी मिलना | ||
+ | तोड़ के हर बन्धन | ||
+ | फूलों की तरह खिलना | ||
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+ | 155. हम आँखों ही आँखों में | ||
+ | ख़्वाब लिए उसको | ||
+ | ढूँडेंगे तो लाखों में | ||
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+ | 156. जो बोझ को ढोता है | ||
+ | सामने मालिक के | ||
+ | सजदे में वो होता है | ||
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+ | 157. आँखों में तो काजल है | ||
+ | मुझको मगर धोखा | ||
+ | फैला हुआ बादल है | ||
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+ | 158. जो पाँव में पायल है | ||
+ | बजती हमेशा ही | ||
+ | दिल किसलिए घायल है | ||
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+ | 159. तुझको तो पता मालिक! | ||
+ | दूर हुआ तुझसे | ||
+ | इतनी-सी ख़ता मालिक! | ||
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+ | 160. अद्भुत ये नज़ारा है | ||
+ | किसने मगर दिल से | ||
+ | क़ुदरत को पुकारा है | ||
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12:51, 26 अप्रैल 2020 के समय का अवतरण
151. बिखरे हैं मिरे सपने
मन में जो उपजे हैं
कब होंगे वो सब अपने
152. हर मौज लिए आशा
गहरे समुन्दर में
तोला तो कभी माशा
153. सावन की घटाएं ये
बरसे बिना कैसे
क्या आग बुझाएं ये
154. मेले में कभी मिलना
तोड़ के हर बन्धन
फूलों की तरह खिलना
155. हम आँखों ही आँखों में
ख़्वाब लिए उसको
ढूँडेंगे तो लाखों में
156. जो बोझ को ढोता है
सामने मालिक के
सजदे में वो होता है
157. आँखों में तो काजल है
मुझको मगर धोखा
फैला हुआ बादल है
158. जो पाँव में पायल है
बजती हमेशा ही
दिल किसलिए घायल है
159. तुझको तो पता मालिक!
दूर हुआ तुझसे
इतनी-सी ख़ता मालिक!
160. अद्भुत ये नज़ारा है
किसने मगर दिल से
क़ुदरत को पुकारा है