"माहिए (161 से 170) / हरिराज सिंह 'नूर'" के अवतरणों में अंतर
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+ | लहरें मचल उट्ठीं | ||
+ | क्या ख़ूब ख़ुशी लाईं | ||
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+ | 164. मौसिम का खुलासा है | ||
+ | शाख़े-तमन्ना को | ||
+ | क्या ख़ूब नवाज़ा है | ||
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+ | 165. बरसात की ये रातें | ||
+ | चढ़ती हुई नदिया | ||
+ | हों कैसे मुलाक़ातें | ||
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+ | 166. ‘मीरा’ हुई दीवानी | ||
+ | गाती फिरे जग में | ||
+ | मैं प्रेम में बौरानी | ||
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+ | 167. संसार तो सपना है | ||
+ | भीड़ है मेले में | ||
+ | कोई भी न अपना है | ||
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+ | 168. कैसी ये उदासी है | ||
+ | होते हुए पानी | ||
+ | वो मीन-सी प्यासी है | ||
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+ | 169. ‘बाबा’ तिरी झोली में | ||
+ | राज़ छुपा कुछ तो | ||
+ | इस नीम-सी बोली में | ||
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+ | 170. क़दमों की निशानी है | ||
+ | पार उतर जाओ | ||
+ | मौजों की रवानी है | ||
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12:51, 26 अप्रैल 2020 के समय का अवतरण
161. जो बर्फ़ ये पिघली है
बन के वो घाटी में
बह धार-सी निकली है
162. ‘रब’ की ये करामत है
हँस के वो काटें हम
जो ज़ीस्त क़यामत है
163. किरनें जो धवल आईं
लहरें मचल उट्ठीं
क्या ख़ूब ख़ुशी लाईं
164. मौसिम का खुलासा है
शाख़े-तमन्ना को
क्या ख़ूब नवाज़ा है
165. बरसात की ये रातें
चढ़ती हुई नदिया
हों कैसे मुलाक़ातें
166. ‘मीरा’ हुई दीवानी
गाती फिरे जग में
मैं प्रेम में बौरानी
167. संसार तो सपना है
भीड़ है मेले में
कोई भी न अपना है
168. कैसी ये उदासी है
होते हुए पानी
वो मीन-सी प्यासी है
169. ‘बाबा’ तिरी झोली में
राज़ छुपा कुछ तो
इस नीम-सी बोली में
170. क़दमों की निशानी है
पार उतर जाओ
मौजों की रवानी है