"चिडियाखानाको सिंह / सीमा आभास" के अवतरणों में अंतर
Sirjanbindu (चर्चा | योगदान) ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सीमा आभास |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatKavi...' के साथ नया पृष्ठ बनाया) |
Sirjanbindu (चर्चा | योगदान) |
||
पंक्ति 9: | पंक्ति 9: | ||
<poem> | <poem> | ||
− | + | सिंह त सिंह नै हुन्छ चिडियाखानामा थुनिए पनि । | |
− | + | ||
− | सिंह त सिंह नै | + | फेर्न सकिँदैन उसका धमनी फूलाएर बग्ने खुन |
− | + | थुन्न सकिँदैन उसका छातीसम्म पुगेर फर्कने श्वास | |
− | युगयुगदेखि भोको पारिए पनि खाँदैन घाँस | + | फुकाल्न सकिँदैन उसका तीखा दाह्राको अहम् |
− | हजार | + | बोधो पार्न सकिँदैन उसका पञ्जाको कौशलता |
− | कदापि | + | छेक्न सकिँदैन उसका तालुबाट फैलने दृढता । |
− | + | ||
− | + | युगयुगदेखि भोको पारिए पनि यसले खाँदैन घाँस | |
− | + | हजार पहरेदारबीच फलामेबारले छेकिए पनि गर्दैन आत्मसमर्पण | |
− | + | सिंहले कदापि भुल्न सक्तैन आफ्नो धर्म । | |
− | + | ||
− | + | लाख साङ्लाले बाँधियोस् | |
− | + | सिंहले गर्भबाट सिंह नै जन्माउँछ । | |
− | + | ||
− | डमरुलाई | + | डमरुलाई दुध चुसाउँदा चुसाउँदै |
− | सिकाउँछ | + | मुखमा च्यापेर सिकाउँछ बलियो प्रेम |
− | + | पञ्जाले च्यातेर सिकाउँछ सिकार खेल्न | |
− | सिकाउँछ | + | थर्काउँदै गर्जीएर देखाउन सिकाउँछ आफ्नो दम्भ |
− | + | त्यहि साँघुरो घेरामा पनि साबधानपूर्वक सिकाउँछ | |
− | अँध्यारो मस्तिष्कलाई | + | वायुवेगमा दौडिन । |
− | + | ||
− | + | चिडियाखानासँग आक्रोसित हुँदै | |
− | एकसमय | + | उज्यालोे छातीलाई कोतरिरहेको |
− | भत्किनेछ चिडियाखाना | + | अँध्यारो मस्तिष्कलाई चिथोरिरहेको |
− | र, | + | यसलाई थाहा छ |
+ | एकसमय | ||
+ | ब्यूँझनै नसक्ने गरी घुर्नेछन | ||
+ | चिडियाखानाका मालिक | ||
+ | पक्कै भत्किनेछ चिडियाखाना | ||
+ | र, बिस्तारै बाहिर निस्कनेछन् सिंहका बथान । | ||
+ | |||
यतिबेला देखिरहेछु | यतिबेला देखिरहेछु | ||
प्रत्येक मनभित्र थुनिएको यौटा आक्रोशित सिंह | प्रत्येक मनभित्र थुनिएको यौटा आक्रोशित सिंह | ||
− | यावत् घरका पर्खालभित्र बेचैन सिंहका | + | यावत् घरका पर्खालभित्र बेचैन सिंहका बथान । |
+ | |||
</poem> | </poem> |
11:33, 28 अप्रैल 2020 के समय का अवतरण
सिंह त सिंह नै हुन्छ चिडियाखानामा थुनिए पनि ।
फेर्न सकिँदैन उसका धमनी फूलाएर बग्ने खुन
थुन्न सकिँदैन उसका छातीसम्म पुगेर फर्कने श्वास
फुकाल्न सकिँदैन उसका तीखा दाह्राको अहम्
बोधो पार्न सकिँदैन उसका पञ्जाको कौशलता
छेक्न सकिँदैन उसका तालुबाट फैलने दृढता ।
युगयुगदेखि भोको पारिए पनि यसले खाँदैन घाँस
हजार पहरेदारबीच फलामेबारले छेकिए पनि गर्दैन आत्मसमर्पण
सिंहले कदापि भुल्न सक्तैन आफ्नो धर्म ।
लाख साङ्लाले बाँधियोस्
सिंहले गर्भबाट सिंह नै जन्माउँछ ।
डमरुलाई दुध चुसाउँदा चुसाउँदै
मुखमा च्यापेर सिकाउँछ बलियो प्रेम
पञ्जाले च्यातेर सिकाउँछ सिकार खेल्न
थर्काउँदै गर्जीएर देखाउन सिकाउँछ आफ्नो दम्भ
त्यहि साँघुरो घेरामा पनि साबधानपूर्वक सिकाउँछ
वायुवेगमा दौडिन ।
चिडियाखानासँग आक्रोसित हुँदै
उज्यालोे छातीलाई कोतरिरहेको
अँध्यारो मस्तिष्कलाई चिथोरिरहेको
यसलाई थाहा छ
एकसमय
ब्यूँझनै नसक्ने गरी घुर्नेछन
चिडियाखानाका मालिक
पक्कै भत्किनेछ चिडियाखाना
र, बिस्तारै बाहिर निस्कनेछन् सिंहका बथान ।
यतिबेला देखिरहेछु
प्रत्येक मनभित्र थुनिएको यौटा आक्रोशित सिंह
यावत् घरका पर्खालभित्र बेचैन सिंहका बथान ।