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"दो निजी कविताएँ / अजित कुमार" के अवतरणों में अंतर

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20:00, 9 सितम्बर 2008 का अवतरण

1


ये जो चेहरे पर खिंची लकीरें हैं…

ये हँसने से, गाने से,
गाते रहने से
अंकित होनेवाली तस्वीरें हैं ।


ये जो अपनी वय से ज़्यादा

दिखनेवाले, माथे पर के

टेढे-मेढे बल हैं—

ये, वे सारे पल हैं,
जो हमने बाँट दिए,
या आँखों-आँखों में ही
रखकर काट दिए ।

सबकी निगाह में ‘बोझ’—

वही तो मेरे संबल हैं ।

जो माथे पर टेढे-मेढे, आड़े-तिरछे

बल हैं ।


2


पहले ही जैसी शान्त-सहज

जिज्ञासा आँखों में ।

‘जो व्यक्त नहीं की गई’—

खुशी कुछ ऐसी होंठों पर ।

सब कुछ तो बदल गया


पर

मुख का भाव नहीं बदला ।


संघर्ष, घुटन,

हारी बाज़ी, लाचारी ।

पर

जीवन जीने का चाव नहीं बदला ।


सब कुछ तो बदल गया

पर मुख का भाव…।