भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"वरदान माँगूँगा नहीं / शिवमंगल सिंह ‘सुमन’" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
छो ()
 
(एक अन्य सदस्य द्वारा किया गया बीच का एक अवतरण नहीं दर्शाया गया)
पंक्ति 3: पंक्ति 3:
 
|रचनाकार=शिवमंगल सिंह सुमन
 
|रचनाकार=शिवमंगल सिंह सुमन
 
}}
 
}}
 
+
{{KKCatKavita}}
 +
<poem>
 
यह हार एक विराम है
 
यह हार एक विराम है
 
 
जीवन महासंग्राम है
 
जीवन महासंग्राम है
 
+
तिल-तिल मिटूँगा पर दया की भीख मैं लूँगा नहीं ।
तिल-तिल मिटूँगा पर दया की भीख मैं लूँगा नहीं।
+
वरदान माँगूँगा नहीं ।।
 
+
वरदान माँगूँगा नहीं।।
+
 
+
  
 
स्‍मृति सुखद प्रहरों के लिए
 
स्‍मृति सुखद प्रहरों के लिए
 
+
अपने खण्डहरों के लिए
अपने खंडहरों के लिए
+
यह जान लो मैं विश्‍व की सम्पत्ति चाहूँगा नहीं ।
 
+
वरदान माँगूँगा नहीं ।।
यह जान लो मैं विश्‍व की संपत्ति चाहूँगा नहीं।
+
 
+
वरदान माँगूँगा नहीं।।
+
 
+
  
 
क्‍या हार में क्‍या जीत में
 
क्‍या हार में क्‍या जीत में
 
 
किंचित नहीं भयभीत मैं
 
किंचित नहीं भयभीत मैं
 
+
संघर्ष पथ पर जो मिले यह भी सही वह भी सही ।
संधर्ष पथ पर जो मिले यह भी सही वह भी सही।
+
वरदान माँगूँगा नहीं ।।
 
+
वरदान माँगूँगा नहीं।।
+
 
+
  
 
लघुता न अब मेरी छुओ
 
लघुता न अब मेरी छुओ
 
 
तुम हो महान बने रहो
 
तुम हो महान बने रहो
 
+
अपने हृदय की वेदना मैं व्‍यर्थ त्‍यागूँगा नहीं ।
अपने हृदय की वेदना मैं व्‍यर्थ त्‍यागूँगा नहीं।
+
वरदान माँगूँगा नहीं ।।
 
+
वरदान माँगूँगा नहीं।।
+
 
+
  
 
चाहे हृदय को ताप दो
 
चाहे हृदय को ताप दो
 
+
चाहे मुझे अभिशाप दो
चाहे मुझे अभिशप दो
+
कुछ भी करो कर्त्तव्य पथ से किन्तु भागूँगा नहीं ।
 
+
वरदान माँगूँगा नहीं ।।
कुछ भी करो कर्तव्‍य पथ से किंतु भागूँगा नहीं।
+
</poem>
 
+
वरदान माँगूँगा नहीं।।
+

03:58, 15 मई 2020 के समय का अवतरण

यह हार एक विराम है
जीवन महासंग्राम है
तिल-तिल मिटूँगा पर दया की भीख मैं लूँगा नहीं ।
वरदान माँगूँगा नहीं ।।

स्‍मृति सुखद प्रहरों के लिए
अपने खण्डहरों के लिए
यह जान लो मैं विश्‍व की सम्पत्ति चाहूँगा नहीं ।
वरदान माँगूँगा नहीं ।।

क्‍या हार में क्‍या जीत में
किंचित नहीं भयभीत मैं
संघर्ष पथ पर जो मिले यह भी सही वह भी सही ।
वरदान माँगूँगा नहीं ।।

लघुता न अब मेरी छुओ
तुम हो महान बने रहो
अपने हृदय की वेदना मैं व्‍यर्थ त्‍यागूँगा नहीं ।
वरदान माँगूँगा नहीं ।।

चाहे हृदय को ताप दो
चाहे मुझे अभिशाप दो
कुछ भी करो कर्त्तव्य पथ से किन्तु भागूँगा नहीं ।
वरदान माँगूँगा नहीं ।।