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|रचनाकार=रामधारी सिंह "दिनकर"
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[[Category:बाल-कविताएँ]]{{KKAnthologyChand}}{{KKCatKavita}}{{KKPrasiddhRachna}}{{KKCatBaalKavita}}<poem>हठ कर बैठा चाँद एक दिन, माता से यह बोला,‘‘सिलवा दो माँ मुझे ऊन का मोटा एक झिंगोला।
हठ कर बैठा चांद एक दिन, माता से यह बोला<br>सिलवा दो मा मुझे ऊन का मोटा एक झिंगोला<br>सन सन सनसन चलती हवा रात भर , जाड़े से मरता हूँ<br>,ठिठुर ठिठुर कर -ठिठुरकर किसी तरह यात्रा पूरी करता हूँ<br>हूँ। आसमान का सफर और यह मौसम है जाड़े का<br>,न हो अगर तो ला दो कुर्ता ही को कोई भाड़े का<br>का।’’ बच्चे की सुन बात, कहा माता ने 'अरे , ‘‘अरे सलोने`<br>!कुशल करे करें भगवान, लगे लगें मत तुझको जादू टोने<br>-टोने। जाड़े की तो बात ठीक है, पर मैं तो डरती हूँ<br>,एक नाप में कभी नहीं तुझको देखा करती हूँ<br>हूँ। कभी एक अंगुल भर चौड़ा, कभी एक फुट मोटा<br>,बड़ा किसी दिन हो जाता है, और किसी दिन छोटा<br>छोटा। घटता-बढ़ता रोज, किसी दिन ऐसा भी करता है<br>,नहीं किसी की भी आँखों को दिखलाई पड़ता है<br>है। अब तू ही ये बता, नाप तेरी तेरा किस रोज लिवायें<br>रोज़ लिवाएँ,सी दे दें एक झिंगोला जो हर रोज बदन में आये!आए?’’ ''-साभार: नंदन, दिसंबर, 1996, 10''</poem>
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