Changes

चुपचाप / राकेश रेणु

15 bytes added, 14:09, 31 मई 2020
}}
{{KKCatKavita}}
{{KKVID|v=XxUvZUV_ZpM}}
<poem>
बून्दें बूँदें गिर रही हैं बादल सेएकरस, धीरे-धीरे, चुपचाप ।चुपचाप।
पत्ते झरते हैं भीगी टहनियों से
पीले-गीले-अनचाहे, चुपचाप ।चुपचाप।
रात झर रही है पृथ्वी पर
रुआँसी, बादलों, पियराए पत्तों सी, चुपचाप ।चुपचाप।
अव्यक्त दुख से भरी
अश्रुपूरित नेत्रों से
विदा लेती है प्रेयसी, चुपचाप ।चुपचाप।
पीड़ित हृदय, भारी क़दमों से
लौटता है पथिक, चुपचाप ।चुपचाप।
उम्मीद और सपनों भरा जीवन
इस तरह घटित होता है, चुपचाप ।चुपचाप।
</poem>
Delete, Mover, Reupload, Uploader
16,441
edits