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"मैंने तो सोचा था- / रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’" के अवतरणों में अंतर
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− | + | कट ही गई | |
− | + | देखो ये अँधियारी रात | |
− | + | और भी कट जाएँगी । | |
− | + | हम धो डालें | |
− | + | आओ उदासी | |
− | + | शीतल जल से | |
− | + | रख दूँ सिर पर हाथ | |
− | + | व्यथाएँ भी घट जाएँगी | |
− | + | मैंने तो सोचा था -मिटकर | |
− | + | घावों का मरहम बन जाऊँ, | |
− | + | पर कुछ भी तो हो न सका । | |
− | + | छूकर तेरा तपता माथा | |
− | + | मैं दो पल को भी , | |
− | + | तेरे हृदय का ताप | |
− | + | चाहकर धो न सका । | |
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18:12, 1 जून 2020 के समय का अवतरण
हुई भोर सुन
ओ मेरे मन के पाखी
कट ही गई
देखो ये अँधियारी रात
और भी कट जाएँगी ।
हम धो डालें
आओ उदासी
शीतल जल से
रख दूँ सिर पर हाथ
व्यथाएँ भी घट जाएँगी
मैंने तो सोचा था -मिटकर
घावों का मरहम बन जाऊँ,
पर कुछ भी तो हो न सका ।
छूकर तेरा तपता माथा
मैं दो पल को भी ,
तेरे हृदय का ताप
चाहकर धो न सका ।