भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"अगली दावत की प्रतीक्षा में / नोमान शौक़" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
|
|
पंक्ति 1: |
पंक्ति 1: |
− | प्यार पनपता है मन में <br />
| |
− | अपने आप<br />
| |
− | बिना किसी प्रयत्न के<br />
| |
− | जिस तरह जंगल में उग आते हैं<br />
| |
− | असंख्य छोटे छोटे पौधे<br />
| |
| | | |
− | लेकिन घृणा<br />
| |
− | तैयार की जाती है कृत्रिम विधियों से<br />
| |
− | किसी घिनावनी प्रयोगशाला में<br />
| |
− | और परोस दी जाती है<br />
| |
− | स्वादिष्ट व्यंजनों की तरह<br />
| |
− | ज़बरदस्ती खाने की मेज़ पर<br />
| |
− | (हो सकता है उबकाई आ जाए<br />
| |
− | आपको मेरी कविता पढ़ते समय)<br />
| |
− |
| |
− | लेकिन यक़ीन कीजिए<br />
| |
− | इन्सानों के भुने हुए मांस<br />
| |
− | औरतों के कटे हुए स्तन<br />
| |
− | और बच्चों की टूटी हुई पसलियां<br />
| |
− | बड़े ही चाव से खाते हैं कुछ लोग<br />
| |
− | छुरी-कांटे से<br />
| |
− | चटख़ारे ले लेकर<br />
| |
− | और पूछते हैं<br />
| |
− | कब होगी अगली दावत<br />
| |
− | और कहां !<br />
| |
23:51, 14 सितम्बर 2008 का अवतरण