भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"अगली दावत की प्रतीक्षा में / नोमान शौक़" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) (पृष्ठ से सम्पूर्ण विषयवस्तु हटा रहा है) |
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) |
||
पंक्ति 1: | पंक्ति 1: | ||
+ | {{KKGlobal}} | ||
+ | {{KKRachna | ||
+ | |रचनाकार=नोमान शौक़ | ||
+ | }} | ||
+ | प्यार पनपता है मन में <br /> | ||
+ | अपने आप<br /> | ||
+ | बिना किसी प्रयत्न के<br /> | ||
+ | जिस तरह जंगल में उग आते हैं<br /> | ||
+ | असंख्य छोटे-छोटे पौधे<br /> | ||
+ | |||
+ | लेकिन घृणा<br /> | ||
+ | तैयार की जाती है कृत्रिम विधियों से<br /> | ||
+ | किसी घिनावनी प्रयोगशाला में<br /> | ||
+ | और परोस दी जाती है<br /> | ||
+ | स्वादिष्ट व्यंजनों की तरह<br /> | ||
+ | ज़बरदस्ती खाने की मेज़ पर<br /> | ||
+ | (हो सकता है उबकाई आ जाए<br /> | ||
+ | आपको मेरी कविता पढ़ते समय)<br /> | ||
+ | |||
+ | लेकिन यक़ीन कीजिए<br /> | ||
+ | इन्सानों के भुने हुए माँस<br /> | ||
+ | औरतों के कटे हुए स्तन<br /> | ||
+ | और बच्चों की टूटी हुई पसलियाँ<br /> | ||
+ | बड़े ही चाव से खाते हैं कुछ लोग<br /> | ||
+ | छुरी-काँटे से<br /> | ||
+ | चटख़ारे ले लेकर<br /> | ||
+ | और पूछते हैं<br /> | ||
+ | कब होगी अगली दावत<br /> | ||
+ | और कहाँ !<br /> |
23:52, 14 सितम्बर 2008 का अवतरण
प्यार पनपता है मन में
अपने आप
बिना किसी प्रयत्न के
जिस तरह जंगल में उग आते हैं
असंख्य छोटे-छोटे पौधे
लेकिन घृणा
तैयार की जाती है कृत्रिम विधियों से
किसी घिनावनी प्रयोगशाला में
और परोस दी जाती है
स्वादिष्ट व्यंजनों की तरह
ज़बरदस्ती खाने की मेज़ पर
(हो सकता है उबकाई आ जाए
आपको मेरी कविता पढ़ते समय)
लेकिन यक़ीन कीजिए
इन्सानों के भुने हुए माँस
औरतों के कटे हुए स्तन
और बच्चों की टूटी हुई पसलियाँ
बड़े ही चाव से खाते हैं कुछ लोग
छुरी-काँटे से
चटख़ारे ले लेकर
और पूछते हैं
कब होगी अगली दावत
और कहाँ !