भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"बोल जोगीरा.... अक्कड़-बक्कड़ / गुलरेज़ शहज़ाद" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
Jalaj Mishra (चर्चा | योगदान) ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार= |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatKavita}} {{KKCatBhojpuriRachna}...' के साथ नया पृष्ठ बनाया) |
(कोई अंतर नहीं)
|
17:33, 5 जून 2020 के समय का अवतरण
रात जरवनीं
दिन झुलसवनीं
गोड़े-गोड़े रस्ता नपनीं
अरमानन के फुंकनीं-तपनीं
तब जा के कुछ
हुनर भेंटाइल
नाता के पूँजी बटोराइल
कउड़ी-कउड़ी खरच के
खुद के
जिनगी में जे हासिल भइल
उहो सब हम अरपित कइनीं
एह दुनिया के
जे कुछ लगे बाँचल बाटे
नइखे कुछहू नरम -मोलाएम
जे कुछ लगे बाँचल बाटे
उ बाटे बस लोहा-लक्कड़
बोल जोगीरा....
अक्कड़-बक्कड़