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"सिसकी,प्यास-- / सुधा गुप्ता" के अवतरणों में अंतर

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तो
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अक्सर हमारी सारी ज़िन्दगी
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खुद से लरते , चोट खाते बीतती है।
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'''4-अँधेरी सुरंग'''
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कितने दिन हुए
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तुमसे
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बिछुड़े
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कितने हफ़्ते-महीने -बरस ?
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सोचती हूँ
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पर कुछ याद नहीं आता ।
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एक अँधेरी सुरंग से गुज़र रही गूँ
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जाने कब से !
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जाने कब तक !!
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कहीं
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रोशनी की एऽऽऽक लकीर नहीं !
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11:46, 6 जून 2020 का अवतरण

1-सिसकी

बहुत देर रो-रोकर
हलकान हो-होकर
सो जाए कोई बच्चा काँधे लगकर
तो
नींद में जैसे बार-बार
उसे इसकी आती है
ऐसे
मुझे तेरी याद आती है
बहुत देर रो-रोकर
हलकान हो-होकर ।
-0-
2-प्यास

 एक दिन भी
अपनी मर्ज़ी का न जिया
एक मैं ही रही प्यासी
और सबने
भर-भर प्याला
छककर पिया।

होगा किसी मुट्ठी में चाँद
किसी में सूरज,
मैंने तो
साँस-साँस
बस
ज़िन्दगी का कर्ज़
चुकता किया।
एक दिन भी
अपनी मर्ज़ी का न जिया।
-0-
3-लड़ाई

शीशे पर
आती है गौरैया
बार-बार
मारती है चोंच
एक बार-दास बार-सौ बार
हज़ार बार ।
ख़ुद पर करती प्रहार-
ख़ुद से होती घायल गौरैया

अक्सर हमारी सारी ज़िन्दगी
खुद से लरते , चोट खाते बीतती है।
-0-

4-अँधेरी सुरंग

कितने दिन हुए
तुमसे
बिछुड़े
कितने हफ़्ते-महीने -बरस ?
सोचती हूँ
पर कुछ याद नहीं आता ।

एक अँधेरी सुरंग से गुज़र रही गूँ
जाने कब से !
गुज़रूँगी
जाने कब तक !!

कहीं
रोशनी की एऽऽऽक लकीर नहीं !
-0-