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"आँसू का दरिया उमड़ा (मुक्तक) / रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’" के अवतरणों में अंतर

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दुनिया घिरी हुई संकट में, छाया  तन-मन पर अँधियारा ।
 
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आँसू का दरिया उमड़ा है, लगता छूटा आज किनारा ।
 
आँसू का दरिया उमड़ा है, लगता छूटा आज किनारा ।
 
मैं प्रभु तुझसे इतना  माँगूँ, तू जग को केवल सुख देना ।
 
मैं प्रभु तुझसे इतना  माँगूँ, तू जग को केवल सुख देना ।
 
सारे दुख मुझको देकरके इस जग को देना उजियारा ।
 
सारे दुख मुझको देकरके इस जग को देना उजियारा ।
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बहुत थका हूँ चलते-चलते, तेरी गोदी में सो जाऊँ।
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नहीं किसी का हो पाया था, मैं केवल तेरा हो जाऊँ।
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फ़सल ज़हर की रहा काटता, रक्तबीज फिर -फिर उग आए,
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इस दुनिया से जब चलना हो, में पुष्प बीज कुछ बो जाऊँ ।
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08:00, 12 जून 2020 का अवतरण

1
दुनिया घिरी हुई संकट में, छाया तन-मन पर अँधियारा ।
आँसू का दरिया उमड़ा है, लगता छूटा आज किनारा ।
मैं प्रभु तुझसे इतना माँगूँ, तू जग को केवल सुख देना ।
सारे दुख मुझको देकरके इस जग को देना उजियारा ।
2
बहुत थका हूँ चलते-चलते, तेरी गोदी में सो जाऊँ।
नहीं किसी का हो पाया था, मैं केवल तेरा हो जाऊँ।
फ़सल ज़हर की रहा काटता, रक्तबीज फिर -फिर उग आए,
इस दुनिया से जब चलना हो, में पुष्प बीज कुछ बो जाऊँ ।