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"आँसू का दरिया उमड़ा (मुक्तक) / रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’" के अवतरणों में अंतर

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फ़सल ज़हर की रहा काटता, रक्तबीज फिर -फिर उग आए,
 
फ़सल ज़हर की रहा काटता, रक्तबीज फिर -फिर उग आए,
 
इस दुनिया से जब चलना हो, में पुष्प बीज कुछ बो जाऊँ ।
 
इस दुनिया से जब चलना हो, में पुष्प बीज कुछ बो जाऊँ ।
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ज़िन्दगी में जिसने भी की ज़फ़ा,  याद आया ।
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एक नहीं मुझे वह हज़ार दफ़ा याद आया।
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तुमने जो हाथ थामा पक्का दिया भरोसा ।
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रह-रहकरके मुझे  हर बेवफ़ा याद आया ।
  
 
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08:02, 12 जून 2020 के समय का अवतरण

1
दुनिया घिरी हुई संकट में, छाया तन-मन पर अँधियारा ।
आँसू का दरिया उमड़ा है, लगता छूटा आज किनारा ।
मैं प्रभु तुझसे इतना माँगूँ, तू जग को केवल सुख देना ।
सारे दुख मुझको देकरके इस जग को देना उजियारा ।
2
बहुत थका हूँ चलते-चलते, तेरी गोदी में सो जाऊँ।
नहीं किसी का हो पाया था, मैं केवल तेरा हो जाऊँ।
फ़सल ज़हर की रहा काटता, रक्तबीज फिर -फिर उग आए,
इस दुनिया से जब चलना हो, में पुष्प बीज कुछ बो जाऊँ ।
3
ज़िन्दगी में जिसने भी की ज़फ़ा, याद आया ।
एक नहीं मुझे वह हज़ार दफ़ा याद आया।
तुमने जो हाथ थामा पक्का दिया भरोसा ।
रह-रहकरके मुझे हर बेवफ़ा याद आया ।