भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"उमरिया ई झंझट बेसाहे में लागल / आचार्य महेन्द्र शास्त्री" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
Jalaj Mishra (चर्चा | योगदान) ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार= |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatKavita}} {{KKCatBhojpuriRachna}...' के साथ नया पृष्ठ बनाया) |
(कोई अंतर नहीं)
|
13:38, 13 जून 2020 का अवतरण
उमरिया ई झंझट बेसाहे में लागल
विविध लोग के चित्त थाहे में लागल।
रहीं एगो नोकर मिलल खूब ठोकर
भले दुष्ट लोके सराहे में लागल।
सभा अउर संस्था में बीतल अवस्था
जिनगिया ई चंदा उगाहे में लागल।
सफलता विफलता कुछो ना बुझाइल
समय बाकिर बहुते कराहे में लागल।
मदत के भरोसा दियाईल खुशी से
मगर कुछ भला लोग डाहे में लागल।
रहल चाह लेकिन ई कमजोर जीवन
बहुत विघ्न के बान्ह ढाहे में लागल।
फकत जोश में काम जे जे नधाइल
फंसे से ही,से-से निबाहे में लागल।
चलल एक ई बैल कोल्हू के जब से
ठहर ना सकल जन्म राहे में लागल।