भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"क्या गाऊँ? / सुभाष पाण्डेय" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार= |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatGeet}} <poem> क्या ग...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
 
(कोई अंतर नहीं)

11:04, 15 जून 2020 के समय का अवतरण

क्या गाऊँ?, तुझे सुनाऊँ।
सुर, लय, ताल, छन्द, कविता सब तेरे चरण चढ़ाऊँ।
क्या गाऊँ?, तुझे सुनाऊँ।

साँस में तू, आवाज़ में तू
मेरे हर इक साज में तू
तेरी कृपा से तेरे सरगम,
तेरे लिए बजाऊँ।
क्या गाऊँ?, तुझे सुनाऊँ।

मेरे गीतों की तू भाषा
भाषा की अन्तिम परिभाषा
मैं गूंगे का शब्द अवाचित
कैसे पढ़ूँ रिझाऊँ।
क्या गाऊँ?, तुझे सुनाऊँ।

मेरे सुर बदलें पल- पल, क्षण
तू संगीत सदैव, सनातन
उस संगीत की स्वरलहरी के
प्राण में प्राण मिलाऊँ।
क्या गाऊँ?, तुझे सुनाऊँ।