भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"नीं करूं मुजरो / इरशाद अज़ीज़" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार= इरशाद अज़ीज़ |अनुवादक= |संग्रह= मन...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
 
(कोई अंतर नहीं)

16:36, 15 जून 2020 के समय का अवतरण

बांनै कैय दो कै म्हैं नीं आवूं
बांरी ड्योढी माथै
नीं झुकावूं माथो
नीं करूं मुजरो

मिलता हुवैला थांरी हेली मांय
जीवण सारू सगळा ठाठ-बाट
खावता हुवैला बै लोग भरपेट-रोटी
जकी राख दी हुवैला
आपरै बडेरां री पागड़ी थांरै पगां मांय

म्हैं सबदां रो लिखारो हूं
साच नैं साच
अर झूठ नैं झूठ कैवण रो हौसलो राखूं
गोलीपो करणिया करसी
थारी हां में हां भरणिया भरसी
इज्जत सूं जीवणिया
सै कीं सह सकै पण
आतमा कदैई नीं बेच सकै