भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"अंधारै सूं / इरशाद अज़ीज़" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार= इरशाद अज़ीज़ |अनुवादक= |संग्रह= मन...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
 
(कोई अंतर नहीं)

16:38, 15 जून 2020 के समय का अवतरण

सूरज
घणी देर तांई
सूवतो रैवै
हुंवतो रैवै
सुपनां मांय अंधारो

थूं जद चावै
भर सकै
थारै मन मांय रंग
बाथेड़ा तो करणा पड़सी
जीते-जी
अंधारै सूं।