भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"अंतस री हूंस / इरशाद अज़ीज़" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
आशिष पुरोहित (चर्चा | योगदान) ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार= इरशाद अज़ीज़ |अनुवादक= |संग्रह= मन...' के साथ नया पृष्ठ बनाया) |
(कोई अंतर नहीं)
|
16:49, 15 जून 2020 के समय का अवतरण
म्हैं जद कदैई
आपो-आप मांय
खुद रै होवण रा
अरथ जोवूं हूं
तो रिस्तां रो अेक जाळ
ठाह नीं कद म्हनैं
पाछो बठै ईज
लेजा‘र छोड देवै
जठै सूं म्हैं चाल्यो
सोचूं,
कदैई तो मिलसी
म्हनैं सोधती फिरती
म्हारै अंतस री हूंस।