भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"प्यार में उनसे करूँ शिकायत / हस्तीमल 'हस्ती'" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=हस्तीमल 'हस्ती' }} {{KKCatGhazal‎}}‎ <poem> प्यार में उनसे करूँ …)
 
 
पंक्ति 17: पंक्ति 17:
 
जीते जी मिल जाए जन्नत, ये कैसे हो सकता है
 
जीते जी मिल जाए जन्नत, ये कैसे हो सकता है
  
कोई मुहब्बत से है खाली कोई सोने-चाँदी से
+
कोई मुहब्बत से है ख़ाली कोई सोने-चाँदी से
 
हर झोली में हो हर दौलत, ये कैसे हो सकता है
 
हर झोली में हो हर दौलत, ये कैसे हो सकता है
  

14:27, 17 जून 2020 के समय का अवतरण

प्यार में उनसे करूँ शिकायत, ये कैसे हो सकता है
तोड़ दूँ मैं आदाबे-मुहब्बत, ये कैसे हो सकता है

चन्द किताबें तो कहतीं हैं, कहतीं रहें, कहने से क्या
इश्क़ न हो इंसाँ की ज़रूरत, ये कैसे हो सकता है

फूल न महकें, भँवरें न बहकें, गीत न गाये कोयलिया
और बच्चे ना करें शरारत, ये कैसे हो सकता है

जन्नत का अरमान अगर है, मौत से कर ले याराना
जीते जी मिल जाए जन्नत, ये कैसे हो सकता है

कोई मुहब्बत से है ख़ाली कोई सोने-चाँदी से
हर झोली में हो हर दौलत, ये कैसे हो सकता है

अपनी लगन में, अपनी वफ़ा में कोई कमी होगी ‘हस्ती‘
वरना रंग न लाए चाहत, ये कैसे हो सकता है!