भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"ये मुमकिन है कि मिल जाएँ तेरी खोई चीज़ें / हस्तीमल 'हस्ती'" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=हस्तीमल 'हस्ती' |संग्रह=कुछ और तरह से भी / हस्तीम…)
 
 
पंक्ति 15: पंक्ति 15:
 
हमारे दिल से सब की सब हैं वो उतरी हुई चीज़ें  
 
हमारे दिल से सब की सब हैं वो उतरी हुई चीज़ें  
  
दिखाती हैं हमें मजबूरियाँ ऐसे भी दिन अक़्सर
+
दिखाती हैं हमें मजबूरियाँ ऐसे भी दिन अक्सर
 
उठानी पड़ती हैं फिर से हमें फेंकी हुई चीज़ें  
 
उठानी पड़ती हैं फिर से हमें फेंकी हुई चीज़ें  
  

14:43, 17 जून 2020 के समय का अवतरण

ये मुमकिन है कि मिल जाएँ तेरी खोयी हुई चीज़ें
क़रीने से सजा कर रख ज़रा बिखरी हुई चीज़ें

कभी यूँ भी हुआ है हंसते-हंसते तोड़ दी हमने
हमें मालूम नहीं था जुड़ती नहीं टूटी हुई चीज़ें

ज़माने के लिए जो हैं बड़ी नायब और महंगी
हमारे दिल से सब की सब हैं वो उतरी हुई चीज़ें

दिखाती हैं हमें मजबूरियाँ ऐसे भी दिन अक्सर
उठानी पड़ती हैं फिर से हमें फेंकी हुई चीज़ें

किसी महफ़िल में जब इंसानियत का नाम आया है
हमें याद आ गई बाज़ार में बिकती हुई चीज़ें