भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
|रचनाकार=देवेन्द्र आर्य
}}
{{KKCatGeet}}
<poem>
होगा होगी भी क्या बात अब तो ख़त्म करिए
बढ़ गई तो ख़बर होगी, अपनी इज़्ज़त को तो डरिए
जो हुआ उसका हमें भी खेद है।
जानते हैं हुआ क्या था?
इंद्र ने फिर आ के धोखे धोके से अहिल्या को छुआ था
किन्तु अबकी दोष गौतम ने अहिल्या को न देकर
इंद्र के मत्थे मढ़ा था।
सत्य होता है सनातन
जिल्द बदली है क़िताबों किताबों की नहीं बदला है दर्शन
किंग होते थे कभी राजन कभी जिल्लेसुभानी
सांसद अब हैं महाजन।
Mover, Reupload, Uploader
3,960
edits