"आदिवासी / मंगलेश डबराल" के अवतरणों में अंतर
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वह कभी उदास और कभी डरा हुआ दिखता है | वह कभी उदास और कभी डरा हुआ दिखता है | ||
उसके आसपास पेड़ बिना पत्तों के हैं और मिट्टी बिना घास की | उसके आसपास पेड़ बिना पत्तों के हैं और मिट्टी बिना घास की | ||
− | यह | + | यह साफ़ है कि उससे कुछ छीन लिया गया है |
उसे अपने अरण्य से दूर ले जाया जा रहा है अपने लोहे कोयले और अभ्रक से दूर | उसे अपने अरण्य से दूर ले जाया जा रहा है अपने लोहे कोयले और अभ्रक से दूर | ||
घास की ढलानों से तपती हुई चट्टानों की ओर | घास की ढलानों से तपती हुई चट्टानों की ओर | ||
सात सौ साल पुराने हरसूद से एक नये और बियाबान हरसूद की ओर | सात सौ साल पुराने हरसूद से एक नये और बियाबान हरसूद की ओर | ||
पानी से भरी हुई टिहरी से नयी टिहरी की ओर जहां पानी खत्म हो चुका है | पानी से भरी हुई टिहरी से नयी टिहरी की ओर जहां पानी खत्म हो चुका है | ||
− | वह कैमरे की तरफ | + | वह कैमरे की तरफ ग़ुस्से से देखता है |
और अपने अमर्ष का एक आदिम गीत गाता है | और अपने अमर्ष का एक आदिम गीत गाता है | ||
15:34, 18 जून 2020 के समय का अवतरण
इंद्रावती गोदावरी शबरी स्वर्णरेखा तीस्ता बराक कोयल
सिर्फ़ नदियां नहीं उनके वाद्ययंत्र हैं
मुरिया बैगा संथाल मुंडा उरांव डोंगरिया कोंध पहाड़िया
महज़ नाम नहीं वे राग हैं जिन्हें वह प्राचीन समय से गाता आया है
और यह गहरा अरण्य उसका अध्यात्म नहीं उसका घर है
कुछ समय पहले तक वह अपनी तस्वीरों में
एक चौड़ी और उन्मुक्त हंसी हंसता था
उसकी देह नृत्य की भंगिमाओं के सहारे टिकी रहती थी
एक युवक एक युवती एक दूसरे की ओर इस तरह देखते थे
जैसे वे जीवन भर इसी तरह एक दूसरे की ओर देखते रहेंगे
युवती बालों में एक फूल खोंसे हुए
युवक के सर पर बंधी हुई एक बांसुरी जो अपने आप बजती हुई लगती थी
अब क्षितिज पर बार-बार उसकी काली देह उभरती है
वह कभी उदास और कभी डरा हुआ दिखता है
उसके आसपास पेड़ बिना पत्तों के हैं और मिट्टी बिना घास की
यह साफ़ है कि उससे कुछ छीन लिया गया है
उसे अपने अरण्य से दूर ले जाया जा रहा है अपने लोहे कोयले और अभ्रक से दूर
घास की ढलानों से तपती हुई चट्टानों की ओर
सात सौ साल पुराने हरसूद से एक नये और बियाबान हरसूद की ओर
पानी से भरी हुई टिहरी से नयी टिहरी की ओर जहां पानी खत्म हो चुका है
वह कैमरे की तरफ ग़ुस्से से देखता है
और अपने अमर्ष का एक आदिम गीत गाता है
उसने किसी तरह एक बांसुरी और एक तुरही बचा ली है
एक फूल एक मांदर एक धनुष बचा लिया है
अख़बारी रिपोर्टें बताती हैं कि जो लोग उस पर शासन करते हैं
देश के 626 में से 230 जिलों में
उनका उससे मनुष्यों जैसा कोई सरोकार नहीं रह गया है
उन्हें सिर्फ़ उसके पैरों तले की ज़मीन में दबी हुई
सोने की एक नयी चिड़िया दिखाई देती है
एक दिन वह अपने वाद्ययंत्रों को पुकारता है अपनी नदियों जगहों और नामों को
अपने लोहे कोयले और अभ्रक को बुला लाता है
अपने मांदर तुरही और बांसुरी को ज़ोरों से बजाने लगता है
तब जो लोग उस पर शासन करते हैं
वे तुरंत अपनी बंदूक निकाल कर ले आते हैं।