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"इन ढलानों पर वसंत आएगा / मंगलेश डबराल" के अवतरणों में अंतर
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घाटी की घास फैलती रहेगी रात को | घाटी की घास फैलती रहेगी रात को | ||
ढलानों से मुसाफ़िर की तरह | ढलानों से मुसाफ़िर की तरह |
15:46, 18 जून 2020 के समय का अवतरण
इन ढलानों पर वसंत आएगा
हमारी स्मृति में
ठंड से मरी हुई इच्छाओं को
फिर से जीवित करता
धीमे-धीमे धुँधुवाता ख़ाली कोटरों में
घाटी की घास फैलती रहेगी रात को
ढलानों से मुसाफ़िर की तरह
गुज़रता रहेगा अँधकार
चारों ओर पत्थरों में दबा हुआ मुख
फिर से उभरेगा झाँकेगा कभी
किसी दरार से अचानक
पिघल जाएगा जैसे बीते साल की बर्फ़
शिखरों से टूटते आएँगे फूल
अंतहीन आलिंगनों के बीच एक आवाज़
छटपटाती रहेगी
चिड़िया की तरह लहूलुहान