"माटी धन है मेरा / ओम नीरव" के अवतरणों में अंतर
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− | माटी | + | माटी तन है मेरा माटी धन है मेरा |
− | माटी | + | माटी में मेरा जीवन सँवरता रहा l |
− | मेरी | + | मेरी हर साँस बंधक रही माटी की |
− | मैं श्रमिक माटी | + | मैं श्रमिक माटी में ही बिखरता रहा l |
− | कितनी ऊँची तुम्हारी हो | + | कितनी ऊँची तुम्हारी हो अट्टालिका |
− | मेरे माथे से | + | मेरे माथे से ऊँची न हो पाएगी, |
− | खिड़की | + | खिड़की जब भी खुलेगी तुम्हारी कोई |
− | खुशबू | + | खुशबू मेरे पसीने की ही आएगी l |
− | आया | + | आया मधुमास जो भी तुम्हारे भवन |
− | पहले | + | पहले चौखट से मेरी गुजरता रहा l |
− | तुमने | + | तुमने मंदिर रचा तुमने मस्जिद रची |
खींच दी बीच में एक दीवार भी, | खींच दी बीच में एक दीवार भी, | ||
− | जिसमे | + | जिसमे खिडकी झरोखा न कुछ भी रखा |
− | करते | + | करते एक दूसरे का जो दीदार भी l |
राम अल्लाह दोनों मिले खेत में | राम अल्लाह दोनों मिले खेत में | ||
− | उनका वरदान झोली में | + | उनका वरदान झोली में झरता रहा l |
चाल बहकी तुम्हारी सँभलकर चलो | चाल बहकी तुम्हारी सँभलकर चलो | ||
− | वरना | + | वरना औंधी चिलम से लुढ़क जाओगे l |
फावड़े का प्रगति से है नाता बड़ा | फावड़े का प्रगति से है नाता बड़ा | ||
भूल जाओगे तो मीत पछताओगे l | भूल जाओगे तो मीत पछताओगे l | ||
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व्योम के वक्ष मानव विहरता रहा l | व्योम के वक्ष मानव विहरता रहा l | ||
− | तन से | + | तन से मैले कुचैले रहे हम सदा |
− | रहती | + | रहती दिल में हमारे सफाई मगर, |
− | मेरी | + | मेरी धनिया की चूनर तो मैली फटी |
− | धानी | + | धानी चूनर धरा को उढ़ाई मगर l |
− | मेरे | + | मेरे माथे से टपकी हरेक बूँद पर |
− | तख्ते | + | तख्ते-ताउस का कोहनूर मरता रहा l |
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10:48, 20 जून 2020 का अवतरण
माटी तन है मेरा माटी धन है मेरा
माटी में मेरा जीवन सँवरता रहा l
मेरी हर साँस बंधक रही माटी की
मैं श्रमिक माटी में ही बिखरता रहा l
कितनी ऊँची तुम्हारी हो अट्टालिका
मेरे माथे से ऊँची न हो पाएगी,
खिड़की जब भी खुलेगी तुम्हारी कोई
खुशबू मेरे पसीने की ही आएगी l
आया मधुमास जो भी तुम्हारे भवन
पहले चौखट से मेरी गुजरता रहा l
तुमने मंदिर रचा तुमने मस्जिद रची
खींच दी बीच में एक दीवार भी,
जिसमे खिडकी झरोखा न कुछ भी रखा
करते एक दूसरे का जो दीदार भी l
राम अल्लाह दोनों मिले खेत में
उनका वरदान झोली में झरता रहा l
चाल बहकी तुम्हारी सँभलकर चलो
वरना औंधी चिलम से लुढ़क जाओगे l
फावड़े का प्रगति से है नाता बड़ा
भूल जाओगे तो मीत पछताओगे l
अन्न की टन्न से शक्ति संपन्न हो
व्योम के वक्ष मानव विहरता रहा l
तन से मैले कुचैले रहे हम सदा
रहती दिल में हमारे सफाई मगर,
मेरी धनिया की चूनर तो मैली फटी
धानी चूनर धरा को उढ़ाई मगर l
मेरे माथे से टपकी हरेक बूँद पर
तख्ते-ताउस का कोहनूर मरता रहा l