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रचनाकारः [[{{KKRachna|रचनाकार=मंगलेश डबराल]][[Category:कविताएँ]]}}[[Category:मंगलेश डबराल]]{{KKCatKavita}}<poem>जल्दी से वह पहुँचना चाहती थीउस जगह जहाँ एक आदमीउसके पानी में नहाने जा रहा थाएक नावलोगों का इन्तज़ार कर रही थीऔर पक्षियों की क़तारआ रही थी पानी की खोज में
~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~बचपन की उस नदी मेंहम अपने चेहरे देखते थे हिलते हुएउसके किनारे थे हमारे घरहमेशा उफनतीअपने तटों और पत्थरों को प्यार करतीउस नदी से शुरू होते थे दिनउसकी आवाज़तमाम खिड़कियों पर सुनाई देती थीलहरें दरवाज़ों को थपथपाती थींबुलाती हुईं लगातार
जल्दी से हमे याद हैयहाँ थी वह पहुँचना चाहती थी<br>नदी इसी रेत मेंउस जगह जहां एक आदमी<br>जहाँ हमारे चेहरे हिलते थेउसके पानी में नहाने जा रहा था<br>एक यहाँ थी वह नाव<br>लोगों का इंतज़ार कर रही थी<br>और पक्षियों की कतार<br>आ रही थी पानी की खोज में<br><br>करती हुई
बचपन की उस नदी में<br>हम अपने चेहरे देखते थे हिलते हुए<br>उसके किनारे थे हमारे घर<br>हमेशा उफनती<br>अपने तटों और पत्थरों को प्यार करती<br>उस नदी से शुरू होते थे दिन<br>उसकी आवाज़<br>तमाम खिड़कियों पर सुनायी देती थी<br>लहरें दरवाज़ों को थपथपाती थीं<br>बुलाती हुईं लगातार<br><br> हमे याद है<br>यहाँ थी वह नदी इसी रेत में<br>जहाँ हमारे चेहरे हिलते थे<br>यहाँ थी वह नाव इंतज़ार करती हुई<br><br> अब वहाँ कुछ नहीं है<br>सिर्फ सिर्फ़ रात को जब लोग नींद में होते हैं<br>कभी-कभी एक आवाज़ सुनायी सुनाई देती है रेत से<br/poem>
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